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मांझी जनजाति घोषित नहीं करने पर नतीजे भुगतने का अल्टीमेटम

मांझी आदिवासी संघर्ष समिति ने धरना देने के बाद राज्यपाल और मुख्यमंत्री को सौंपे ज्ञापन में की मांझी जनजाति घोषित करने की मांग

ब्यूरो, भोपाल


मांझी जाति को जनजाति घोषित नहीं करने के खिलाफ प्रदेशव्यापी आंदोलन किया जाएगा। इसके साथ ही आगामी चुनावों में इस मांग का समर्थन नहीं करने वालों के खिलाफ प्रदेश लाख से ज्यादा मांझी जनजाति के लोग मतदान करेंगे।
यह चेतावनी बुधवार को यादगारे शाहजहांनी पार्क में मांझी आदिवासी संघर्ष समिति ने धरना देने के बाद राज्यपाल और मुख्यमंत्री को सौंपे ज्ञापन में दी है। धरने को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने राज्य सरकार के रवैए की आलोचना करते हुए कहा कि, एमपी ट्राइब्स के रिसर्च में साबित होने के बाद भी मछली पालन और बोट चलाने वालों को जनजाति का दर्जा देने की पहल नहीं की जा रही है। बार-बार गोंड जनजाति को मांझी बताया जा रहा है, जबकि मांझी जनजाति अलग है और इसके ऐतिहासिक एवं एंथ्रोलाजिकल सुबूत हैं। राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने वालों में नेशनल एसोसिएशन आफ फिशरमैन के चेयरमैन मिट्टूप्रसाद, स्टेट प्रेसीडेंट अनिल गडकर, संजय बाथम, मूरत सिंह कीर, केशव मांझी, सोहनलाल सोंधिया, लक्ष्मीनारायण नाविक, उमाशंकर रायकवार, दीपचंद रायकवार, राकेश वर्मा और चंद्रशेखर आदि थे। 

नहीं सहेंगे मांझी जनजाति के साथ अन्याय


नेशनल एसोसिएशन आफ फिशरमैन के नेशनल चेयरमैन मिट्टू प्रसाद ने दो टूक कहा है कि, मांझी जनजाति के साथ मध्यप्रदेश और केंद्र की सरकार अन्याय करना बंद करे, अन्यथा आगामी चुनावों में नतीजे भुगतने होंगे। धरने को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि, दूसरी जनजातियों की राजनीतिक ब्लैकमेलिंग के चलते ही मांझी जनजाति को उसके वाजिब हक से वंचित रखा जा रहा है। वैज्ञानिक शोधों और एतिहासिक तथ्य इसकी पुष्टि करते हैं कि, मछली और नाव से जीविका कमाने वाले नदियों के किनारे बसी जाति ही मांझी जनजाति है। इसके बाद भी साजिश के चलते गोंड और मांझी जनजाति को एक ही बताया जा रहा है, जोकि सही नहीं है। दोनों ही जनजाति हैं और अलग-अलग हैं। श्री प्रसाद ने कहा कि देशभर में फिशरमैन इस मुद्दे पर एकजुट हैं और अपने संविधानिक अधिकार पाने के लिए दिल्ली तक लड़ाई के लिए तैयार हैं। 
श्री प्रसाद ने मछुआरों के चलाई जा रही योजनाओं का और अधिक प्रचार प्रसार करने और अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने का आव्हान किया। उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि, मध्य प्रदेश में सहकारी समितियों की आड़ में गैर मछुआरे हावी हो गए हैं और तालाबों पर कब्जा कर रहे हैं। श्री प्रसाद ने मध्यप्रदेश सरकार से असली मछुआरों के अधिकारों के संरक्षण पर ध्यान देने की मांग भी की।

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