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बिहार में कोरोना से हुई मौतों के मामलें फंसी सरकार

पटना। बिहार में कोरोना से हुई मौतों के मामले में नीतीश सरकार फंस गई है। सरकार की तरफ से जो ताजा आंकड़े जारी किए गए उसके बाद लगातार यह सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार ने मौत के आंकड़ों को छिपाने का प्रयास किया? स्वास्थ विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत की तरफ से मौत के ताजा आंकड़ों के बारे में बुधवार को जानकारी दी गई थी। उसके बाद लगातार सरकार की फजीहत हो रही है। अब सरकार की तरफ से स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने सफाई दी है।

स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने कहा है कि बिहार सरकार ने कोरोना से मौत का आंकड़ा कभी छिपाने का प्रयास नहीं किया। सरकार का मकसद है कि जिन लोगों की कोरोना से मौत हुई उनके परिजनों को सरकार की तरफ से दी जाने वाली आर्थिक मदद मिल पाए और इसीलिए सरकार ने पिछले 15 से 20 दिनों में जिला स्तर पर ऐसे लोगों की मौत का आंकड़ा जुटाया जिनकी जान कोरोना और केंद्र की जारी गाइडलाइन के मुताबिक चली गई। मंत्री मंडल पांडे ने कहा कि हम कभी भी आंकड़े छिपाना नहीं चाहते बल्कि लोगों तक मदद पहुंचाना चाहते हैं और आर्थिक मदद देने के मकसद से ही जिला स्तर पर एक बार फिर मौत के आंकड़ों को इकट्ठा किया गया। अब जो आंकड़े सामने आए हैं वह सार्वजनिक किए गए हैं। ऐसे में हेराफेरी जैसी बात का आरोप लगाना बेमानी है।

दरअसल कोरोना के कहर के बीच बिहार सरकार हर दिन कोरोना से होने वाली मौत का आंकड़ा जारी कर रही थी। सरकार के पास जिलों से रिपोर्ट भेजे जा रहे थे, उन्हें जोड़ कर मौत का पूरा आंकडा जारी किया जा रहा था। अब सरकारी जांच में पता चला कि जिलों से मृतकों की जो संख्या भेजी जा रही थी उसमें बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई। जिलों ने मृतकों की सही संख्या भेजी ही नहीं, लिहाजा गलत आकंड़े जारी किए गए।

बिहार के स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत ने आज स्वीकारा कि कोरोना से होने वाली मौत का सही आंकड़ा सामने नहीं आया था. उनके मुताबिक सरकार ने जब अपने स्तर से जांच कराई तो ये बात सामने आ रही है। अपर मुख्य सचिव बोल रहे हैं कि जिन्होंने गडबड़ी की और सही संख्या की जानकारी नहीं दी उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।

प्रत्यय अमृत ने बताया कि पिछले 18 मई को ही राज्य सरकार ने कोरोना से होने वाली मौत को लेकर जांच कराने का आदेश जारी किया था। इसके लिए जिलों में दो तरह की टीम बनाई गई। एक टीम में मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य के साथ साथ कॉलेज के मेडिसिन विभाग के हेड को रखा गया था। वहीं दूसरी टीम सिविल सर्जन के नेतृत्व में बनाई गई जिसमें एक और मेडिकल आॅफिसर शामिल थे। दोनों स्तर पर जब जांच की गई तो पता चला कि मौत के आकड़ों को छिपाया गया। सरकार को गलत जानकारी दी गई।


 

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