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जाति, लिंग, वर्ग संघर्ष और राजनीति की ‘अगरबत्ती’

जबलपुर। के समागम रंगमंडल और उसके न‍िर्देशक आशीष पाठक व स्वत‍ि दुबे को नाटक की तलाश नहीं करना पड़ती। आशीष पाठक स्वयं नाटक ल‍िखते हैं और समागम रंगमंडल के माध्यम से मंचित करते हैं। समागम रंगमंडल के अध‍िकांश मंच‍ित नाटक आशीष पाठक ने ल‍िखे हैं। ग‍िरीश कर्नाड का हयवदन व अग्न‍ि और बरखा, व‍िजयदान देथा का सराय एवं आगा हश्र कश्मीरी का यहूदी की लड़की जैसे कुछ मंचित नाटक अपवाद हैं। समागम रंगमंडल इन द‍िनों ‘अगरबत्ती’ का मंचन पूरे देश में कर रही है। इस नाटक का आशीष पाठक ने ल‍िखा है और न‍िर्देशन स्वाति दुबे का है। सक्रिय रंग निर्देशक आशीष पाठक ने दरअसल ‘अगरबत्‍ती’ ने इंटर कॉलेज नाट्य प्रतियोगिता के लिए ल‍िखा था। इस नाटक को मंच पर प्रस्तुत कर उन्होंने जड़ता को तोड़ा था। लगभग दो-तीन वर्ष पूर्व स्वाति दुबे एनएसडी की व‍िद्यार्थी थीं। उनकी ड‍िप्लोमा प्रस्तुति के लिए आशीष पाठक ने ‘अगरबत्ती’ को नए स‍िरे से ल‍िखा। उन्होंने विस्‍तार व व्‍यापकता दे कर नए ढंग से मंच पर इसे प्रस्तुत क‍िया। ‘अगरबत्ती’ को प्रत‍िष्ठ‍ित महेन्द्रा एक्सीलेंस थ‍िएटर अवार्ड (मेटा) के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ मौल‍िक स्क्र‍िप्ट, सर्वश्रेष्ठ लाइट डि‍जाइन व सर्वश्रेष्ठ महिला अभ‍िनेत्री श्रेण‍ियों के लिए अवार्ड मिला। आशीष पाठक को सर्वश्रेष्ठ मौलिक स्क्र‍िप्ट अवार्ड मिलने से उनके काम को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। अब यहीं नाटक ‘अगरबत्ती’ देश भर में मंचित हो रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है क‍ि नाटक का मंचन महानगर से कस्बों तक में हो रहा है। व‍िषयवस्तु व प्रस्तुतिकरण के कारण इसे जबलपुर, बुंदेलखंड के टीकमगढ़-छतरपुर, मुंबई, द‍िल्ली और गुवाहटी सब जगह पसंद क‍िया जा रहा है। नाटकों की र‍िपीट वेल्यू कम होती है, लेक‍िन ‘अगरबत्ती’ दर्शक बार-बार देखना चाहते हैं और अन्य लोगों को देखने की स‍िफार‍िश भी करते हैं।   

फूलन देवी व बेहमई हत्याकांड की पृष्ठभूमि पर आधारित अगरबत्ती का मूल संदेश है-’पापी नातेदार हो तो भी पापी ही होता है।‘ नाटक में बेहमई हत्याकांड में मारे गए ठाकुरों की विधवाएं अगरबत्ती निर्माण का उद्यम कर अपना गुजर बसर कर रही हैं। जेल में बंद फूलन को खत्म किए बिना अपने पति‍ की अस्थ‍ि भस्म का तर्पण न करने को संकल्प‍ित लालाराम की ठाकुराइन कल्ली की सहायता के इंतजार में सभी व‍िधवाओं को संगठ‍ित कर रही हैं। विधवाओं को फूलन देवी पर उनके पति द्वारा किए गए अत्याचारों में कुछ भी गलत नहीं दिखता। वास्तव में, वे फूलन देवी से बदला लेने के लिए कुछ कर रही हैं। पितृसत्ता उनके दिमाग में गहरे पेठ की हुई है क‍ि वे इसकी वाहक बन जाती हैं।  नाटक इसी प‍ितृसत्ता को चुनौती देता है। इन्हीं व‍िधवाओं में से एक दमयंती एक बहस को जन्म देती है क‍ि हत्याकांड में मरे सभी पुरूष क्यों थे ? पापी एक पापी है भले ही वह परिवार का हिस्सा क्यों न हो। अगरबत्ती-प‍ितृसत्तात्मक समाज को प्रभावित करने वाली कहानी है। नाटक में बहस, टूटन और भ्रम चटकने का स‍िलसिला उस समय चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाता है, जब बात पापी नातेदार हो तो भी पापी ही होता है, पर पहुंच जाती है। अगरबत्ती की विषयवस्तु में दोनों पक्षों के मुद्दे के औचित्य को सिद्ध करने व संतुलन के साथ एक न‍िर्णायक बिन्दु पर नाटक पहुंचता है, जहां जाति, लिंग, लिंग, वर्ग संघर्ष और राजनीति जैसे सवाल व मुद्दे गंभीरता से उठते हैं और चर‍ित्रों के साथ दर्शक को तय करना पड़ता है क‍ि वो कहां खड़ा है। नाट्य प्रस्तुति उच्च जातियों द्वारा सदियों के दमन और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ भी उठाती है। नाटक कई बार चरित्रों के निजी जीवन में प्रव‍िष्ट होता है। जहां कुछ सुख के पल हैं। नाटक के सभी महिला पात्रों से सहानुभूति होती है। इससे दर्शकों का ध्यान फूलन के साथ हुए सामूहिक बलात्कार से दूर होता है। 

लेखक आशीष पाठक व निर्देशक स्वाति दुबे ने नाटक को कहीं भी रोमांट‍िक नहीं होने द‍िया है। उन्होंने बुंदेलखंड के ग्रामीण जीवन को ज्यों का त्यों प्रस्तुत क‍िया है। लेखक व न‍िर्देशक ने हिंदी के साथ बुंदेली बोली का म‍िश्र‍ित अनुपात रखा है। वे दर्शकों के ह‍िसाब से भाषा व बोली का अनुपात बदलते रहते हैं। उनका मानना है क‍ि कलाकार जब बुंदेली में संवाद बोलते है, तब उसके भाव अध‍िक प्रभावी होते हैं। संवेदना की अभ‍िव्यक्त‍ि के लिए भाषा पर आश्र‍ित नहीं होना चाह‍िए। यह सही है क‍ि ‘अगरबत्ती’ भाव भंग‍िमाओं का नाटक है। यह भाषा नहीं, बोली का नाटक है। नाटक में जब भी खामोशी होती है, तब उसमें भी आवाज़ महसूस होती है। दर्शक चौंक जाते हैं-जब नाटक में चुप्पी बोलती है।

अगरबत्ती में आठ महिला पात्र हैं। इन महिला पात्रों में ठकुराइन, दमयंती, कौशल्या, लज्जो, नन्हीं बाई और कल्ली महत्वपूर्ण हैं। स्वाति दुबे ने ठाकुराइन और मानसी रावत ने दमयंती की भूमिकाएं न‍िभाई हैं। स्वाति दुबे ने न‍िर्देशन के साथ ठाकुराइन की भूमिका में सधा हुआ अभ‍िनय क‍िया है। दमयंती के रूप में मानसी रावत और लज्जो के रूप में श‍िवांजल‍ि गजभ‍िए संभावनाशील हैं। बाकी महिला कलाकार भी क‍िसी से कम नहीं हैं। बुंदेली बोलती हुईं सभी महिला कलाकार स्वाभाव‍िक द‍िखती हैं। संवाद प्रभावी हैं और उनमें कहावतों की आलोचना है, कहना चाह‍िए क‍ि द्वन्दात्मक आलोचना है। बुंदेली संस्कृति व व‍िवाह के मौके पर खेला जाने वाला मह‍िलाओं का खेल बाबा-बाई, राई, लोरी व फागुन गीत नाटक की व‍िषयवस्तु को व‍िश्वसनीय बनाने में सहायक है। व‍िवाह के मौके पर घर में पुरूषों के न रहने पर महिलाओं का गीत और बाबा-बाई का खेल यौन आकांक्षाओं का दमन एवं दमित इच्छाओं का व‍िस्फोट है। इसे महिलाओं का व्यक्त‍िगत गीत कह सकते हैं। नाटक में र‍िकार्डेड संगीत का भी बुद्ध‍िमतापूर्ण उपयोग है। नाटक में गोव‍िंद नामदेव की सार्थक कमेन्ट्री प्रस्तुति को स्पष्ट व गतिवान बनाती है। 

स्वाति दुबे की प्रकाश पर‍िकल्पना नाटक की व‍िषयवस्तु के भाव और वातावरण के अनुकूल है। प्रस्तुति के अंत में अगरबत्ती मसाले के साथ अस्थ‍ियों की राख उड़ते समय प्रकाश का संयोजन उत्कृष्टता के साथ क‍िया गया है। स्वाति दुबे की वस्त्र पर‍िकल्पना में कल्पनाशीलता है। नाटक का सेट प्रत्येक मंचन में अलग-अलग रूप ले रहा है। गुवाहटी में बांस का उपयोग है, तो गोवा में फ्लेक्स और जबलपुर में भूसा का उपयोग क‍िया गया। खेत का मचान और बैक ग्राउंड में क‍िवाड़ विषय के अनुकूल है।   

आशीष पाठक का नाट्य लेखन जितना सधा हुआ, दृढ़ व व‍िश्वसनीय है, उतना ही स्वाति दुबे का निर्देशन। नाटक की ड‍िजाइन‍िंग में कल्पनाशीलता व मेहनत झलकती है। प्रत्येक दृश्य अनुशास‍ित है। कहीं कुछ गैर जरूरी नहीं लगता। फ्लेशबैक दृश्यों को कसने की जरूरत है। स्वाति दुबे ने नाटक के स्वभाव के अनुसार न‍िर्देशन क‍िया है। उन्होंने लेखक के श‍िल्प को नया आकार दे कर मंच पर व्यवस्थि‍त ढंग से प्रस्तुत क‍िया। कलाकार मंच पर अभ‍िनय की दृष्ट‍ि से अनुशास‍ित व न‍ियंत्र‍ित हैं। स्वाति दुबे ने इसका पहला मंचन एनएसडी के प्रश‍िक्ष‍ित कलाकारों के साथ क‍िया, जिसकी द‍िल्ली में बड़ी चर्चा हुई। लेक‍िन जबलपुर लौट कर स्थानीय कलाकारों के साथ उसी स्तर की प्रस्तुति को खड़ा करना बड़ी चुनौती थी, जिसे उन्होंने (स्वाति दुबे ने) क‍िया। प‍िछले तीन वर्ष से पूरे देश में घूम-घूम कर इसका मंचन हो रहा है। यही न‍िर्देशक के रूप में स्वाति दुबे की बड़ी सफलता है।   

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