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जलवायु परिवर्तन और वन-संरक्षण के लिए डब्ल्यू.आर.आई. और एप्को में हुआ एमओयू

भोपाल। पर्यावरण विभाग के एप्को द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान डब्ल्यूआरआई इंडिया के सहयोग से जलवायु परिवर्तन पर सोमवार को महत्वपूर्ण कार्यशाला की गई। कार्यशाला में एप्को द्वारा डब्ल्यूआरआई इंडिया के साथ तकनीकी सहयोग के लिए एमओयू भी किया गया, जो अगले 5 वर्ष में मध्यप्रदेश में जलवायु परिवर्तन एवं वनों के संरक्षण संबंधी कार्य पर केन्द्रित होगा। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य नवम्बर 2022 में मिस्र में संपन्न जलवायु परिवर्तन सम्मलेन सीओपी-27 के मुख्य बिन्दुओं पर प्रस्तुतीकरण कर विचार-विमर्श किया जाना था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कार्यपालन संचालक, एप्को श्री मुजीबुर्रहमान खान ने की। सीएएन इंटरनेशनल के हेड श्री हरजीत सिंह कार्यशाला के मुख्य वक्ता थे। उद्घाटन सत्र में राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र के समन्वयक श्री लोकेन्द्र ठक्कर, डब्ल्यूआरआई इंडिया के क्लाइमेट प्रोग्राम की निदेशक सुश्री उल्का केलकर, डब्ल्यूआरआई इंडिया के फारेस्ट प्रोग्राम की निदेशक डॉ. रूचिका सिंह और क्लाइमेट प्रोग्राम के वरिष्ठ प्रबंधक श्री सुब्रतो चक्रवर्ती विशेष रूप से मौजूद थे। कार्यक्रम में भोपाल में स्थित प्रमुख अकादमिक संस्थानों और विषय-विशेषज्ञों ने भी हिस्सा लिया।

कार्यपालन संचालक एप्को ने डब्ल्यूआरआई इंडिया की प्रशंसा करते हुए कहा कि मैं आशा करता हूँ कि एमओयू में राज्य में अगले 5 वर्ष में उपयोगी एवं सार्थक प्रयास किये जायेंगे, जिसके परिणामस्वरूप हम सस्टेनेबल और ग्रीन डेवलेपमेंट की ओर परस्पर ठोस कदम बढ़ाएंगे। एप्को, राज्य एवं जिला स्तर पर डब्ल्यूआरआई इंडिया और संबंधित विभागों को समस्त प्रकार की संस्थागत एवं तकनीकी सहायता देना जारी रखेगा।

राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र के समन्वयक श्री लोकेन्द्र ठक्कर ने कहा कि एप्को म.प्र. शासन की विशिष्ट संस्था है, जो राज्य शासन को पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर परामर्श देने के साथ शोध अध्ययन, योजना कार्य तथा प्रशिक्षण एवं क्षमता विकास के कार्यों के लिए प्रतिबद्ध है।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री सिंह ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित Loss & Damage विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मध्यप्रदेश जलवायु परिवर्तन के कृषि, जल-संसाधन, पर्यटन और ऊर्जा क्षेत्रों में एक बड़ी चुनौती पेश कर रहे प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील राज्य है। उपयुक्त नीतियों के साथ तकनीकी और वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता स्थानीय स्तर के समाधानों को बढ़ाने, लचीला बनाने और हानियों एवं क्षतियों को दूर कर मानव क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक है। इसी तरह के मुद्दों का सामना कर रहे अन्य लोगों से सीख कर देश के भीतर और बाहर ज्ञान के आदान-प्रदान से राज्य को भी लाभ होगा।

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