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जन्म-मरण, सुख-दुःख, जय-पराजय; जीवन की यात्राओं का कोई अंत नहीं : शास्त्री


बेगमगंज।  शिवशंकर दरबार मंदिर मकबरा  में चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण कथा एवं रुद्र महायज्ञ में पं.कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा - जन्म-मरण, सुख-दुःख, जय-पराजय; जीवन की यात्राओं का कोई अंत नहीं है । किन्तु भगवत- प्राप्ति के बाद सभी यात्राओं का स्वतः ही अवसान हो जाता है। संसार की नश्वर चीजों की इच्छा रखोगे तो सदा दुःखी रहना पड़ेगा, अत्यधिक दुःख भोगना पड़ेगा। इच्छा करनी है तो आत्म-स्वभाव को जानने की, भगवान से एक होने की करो। इच्छा करो, प्रबल इच्छा करो, लेकिन संसार को पाने की नहीं अपितु सच्चा आनन्द पाने की, मुक्ति पाने की। उद्यम करो, खूब उद्यम करो अपने असली घर में पहुँचने के लिए जहाँ पहुँचने के बाद फिर इस दुःख रूपी संसार में वापस नहीं आना पड़े। भागवत संसार से चित हटाकर परमात्मा में चित लगाती है और ज्ञान, भक्ति और वैराग्य प्रदान करती है। समस्त कार्यो को करने के बाद भी जीव कभी पूर्ण नहीं होता है। लेकिन, यदि उसे भगवत भक्ति प्राप्त हो जाए तब वह पूर्ण हो जाता है। मनुष्य को शाश्वत आनन्द की प्राप्ति संसार के किसी वस्तु से नहीं मिलती है। वह आनन्द सिर्फ और सिर्फ भगवान की शरण में आने से मिलती है। इसलिए जीव को परमात्मा के शरण मे आना पड़ेगा। तभी उसका कल्याण सम्भव है। स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-स्वरूप को जानने के लिए, आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। भगवान की पूजा- अर्चना-उपासना करते समय हमें यह प्रार्थना करनी चाहिए कि हे प्रभु  जैसे आप स्वस्थ व स्वरूपस्थ हैं, वैसा हमें बनाएं। हम कर्म को भी पूजा की तरह मानें। अच्छे कर्मों के परिणाम भी अच्छे अर्थात्, निर्मल होते हैं। इन्हीं परिणामों से हम प्रभु के निकट पहुँच पाते हैं। भक्ति और आराधना पुण्य का कारण तो हैं ही, साथ ही हमें भवबंधनों से मुक्ति भी दिलाते हैं। जगत में प्रपंच का कोई अंत नही है; साधना का अंत है - साध्य की प्राप्ति; क्योंकि, साधना तो केवल साध्य की प्राप्ति तक के लिए ही है। साधक वो जो अपने अन्त:करण को सुन्दर बनाए, आध्यात्मिक बनाए, दिव्य बनाए। चित की एकाग्रता, मन की निर्मलता और बुद्धि का अटल निश्चय एक बड़ी साधना है ! पवित्र मन ही उत्तम तीर्थ है, जितना मन से पवित्र रहोगे, उतना ही भगवान से करीब रहोगे। भविष्य को सुन्दर बनाने के लिए वर्तमान को ठीक से जीए। हम उत्तम कोटि के आदर्शों पर चलें। अतः जीवन में सफलता का पहला सूत्र यह है कि हमारे स्वभाव में सरलता और चरित्र में निर्मलता हो।

भागवत कथा

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