भव्य और अनूठे मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में हर तरफ इतिहास बिखरा पड़ा है। प्राकृतिक मनोरम स्थलों की तो यहां पूरी श्रंखला है फिर भी इस इलाके में सैलानी नजर नहीं आते। पर्यटन विकास की अनगिनत खूबियों के बावजूद इस क्षेत्र को विकसित नहीं किया गया। यदि इस अंचल की धरोहरों को सहेजकर उन्हें पर्यटन के नक्शे पर लाया जाय तो यहां रोजगार के नये अवसर सृजित हो सकते हैं। सैलानियों को आकर्षित करने के लिए यहां पर छठवीं शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक के अनूठे मन्दिर मौजूद हैं। इन मन्दिरों की स्थापत्य कला देखते ही बनती है। पन्ना जिले का सिद्धनाथ मन्दिर उनमें से एक है जिसकी शिल्पकला किसी भी मायने में खजुराहो से कम नहीं है।
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पन्ना के पास स्थित प्राचीन चौमुखनाथ मंदिर |
पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित नहीं हो सका पन्ना
छठवीं शताब्दी से लेकर ग्यारवीं शताब्दी तक के मन्दिर मौजूद
उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 60 किमी दूर स्थित यह अनूठा स्थल अगस्त मुनि आश्रम के नाम से विख्यात है। इस पूरे परिक्षेत्र में प्राचीन मन्दिरों व दुर्लभ प्रतिमाओं के अवशेष जहां-तहां बिखरे पड़े हैं, जिन्हें संरक्षित करने के लिए आज तक कोई पहल नहीं हुर्ई। पन्ना जिले के सिद्धनाथ मन्दिर की शिल्प कला देखने योग्य है, ऊंची पहाडियÞों से घिरे गुडने नदी के किनारे स्थित इस स्थान पर कभी मन्दिरों की पूरी श्रंखला रही होगी। मन्दिरों के दूर-दूर तक बिखरे पड़े अवशेष तथा बेजोड़ नक्कासी से अलंकृत शिलायें, यहां हर तरफ दिखाई देती है। जिससे प्रतीत होता है कि यहां कभी विशाल मन्दिर रहे होंगे। मौजूदा समय उस काल का यहां पर सिर्फ एक मन्दिर मौजूद है जिसे सिद्धनाथ मन्दिर के नाम से जाना जाता है। पुराविदों का कहना है कि सलेहा के आसपास लगभग 15 किमी के दायरे वाला क्षेत्र पुरातात्विक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसी क्षेत्र में नचने नामक स्थान भी है यहां पर गुप्त कालीन मन्दिर है।
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पन्ना जिले में स्थित प्राचीन सिद्धनाथ मन्दिर |
जानकारों का कहना है कि सिद्धनाथ मन्दिर नचने के चौमुखनाथ मन्दिर के समय का है। चौमुखनाथ मन्दिर छठवीं शताब्दी का है जो खजुराहो के मन्दिरों से तीन सौ वर्ष अधिक प्राचीन है। मन्दिर के पुजारी का कहना है कि इस परिसर के चारो ओर 108 कुटी मन्दिर बने हुए थे। जहां ऋषि - मुनि निवासकर साधना में रत रहते थे। समुचित देखरेख न होने के कारण अधिकांश कुटी मन्दिर ढेर हो चुके हैं। यह भी एक खासियत है कि पुरातात्विक व धार्मिक महत्व के इस स्थल तक पहुंचना आसान नहीं है, दुर्गम, घुमावदार और पथरीले रास्ते से होकर यहां जाना पड़ता है। इस प्राचीन स्थल में भगवान श्रीराम के वनवासी रूप की दुर्लभ पाषाण प्रतिमा मिली है। पुराविदों का यह दावा है कि देश में अब तक प्राप्त भगवान राम की पाषाण प्रतिमाओं में यह सबसे प्राचीन है।