रक्षा बंधन का भाई-बहिन का सबसे बड़ा त्यौहार तो माना ही जाता है लेकिन प्रणामी सम्प्रदाय में रक्षा बंधन का महत्व इसलिए और भी विशेष हो जाता है, क्योंकि रक्षाबंधन के दिन ही बुन्देल केशरी महाराजा छत्रसाल, जिस समय महाराजा न होकर सिर्फ छापामार युद्ध करते थे और वे अपने अत्यंत शक्तिशाली दुश्मनों से बुरी तरह से असुरक्षित महशूस कर रहे थे, की भेंट महामति श्री प्राणनाथ से हुई थी। इतिहास गवाह है कि इस भेंट के बाद ही छत्रसाल जी के भीतर आत्म-रक्षा का प्रबल भाव जागृत हुआ और उन्होंने अपने दुश्मनों पर फतह हासिल की थी।
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पन्ना में ऐतिहासि महामति श्री प्राणनाथ जी का मंदिर |
प्रणामी संप्रदाय में रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है धूमधाम और श्रृद्धा से
संवत 1740 की इस भेंट के परिणामस्वरूप ही महाराजा छत्रसाल अपना साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुए थे। इसी वजह से प्रणामी सम्प्रदाय के अनुयायी इस दिन को महामति प्राणनाथ जी एवं महाराजा छत्रसाल की प्रथम भेंट के कारण उत्सव के रूप में हर वर्ष मनाते हैं। इस वर्ष भी यह आयोजन श्री प्राणनाथ मंदिर में बड़े ही उत्साह से मनाया गया और जैसे ही बीतक कथा के माध्यम से इस प्रसंग का वर्णन पूरा हुआ, वैसे ही मंदिर में उपस्थित सभी श्रद्धालुओं द्वारा परम्परानुसार श्री जी को श्रीफल एवं प्रसाद अर्पित किया गया।
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कथा वाचन करते पं. योगेश पाण्डेय साथ में पं. कुंजबिहारी दुबे |
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बंगला जी दरबार साहब में बीतक कथा का श्रवण करने श्रद्धालू |
का तिलक
महामति श्री प्राणनाथ जी से आशीर्वाद प्राप्त कर नरवीर केशरी छत्रसाल जी फतह की ओर बढ़ते चले गए। एक के बाद एक बावन लड़ाईयां जीतीं थीं। महामति ने छत्रसाल महाराज को राजा बनाने का भी आशीर्वाद दिया था, इसी तारतम्य में श्री जी ने परना (पन्ना का पुराना नाम) को राजधानी बनाते हुए छत्रसाल महाराज का तिलक करते हुए उन्हें एक विशाल बुन्देलखण्ड साम्राज्य का राजा बनाया। जब महाराजा छत्रसाल का तिलक किया गया तो उस समय आर्थिक परेशानी की बात महाराज ने स्वामी जी से कही तो महामति जी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए यह कहा कि आज के दिन तुम अपना घोड़ा जितना दौड़ा सको तो दौड़ा लो क्योंकि जहां-जहां घोड़े के पग पड़ेंगे वह जमीन रत्नगर्भा हो जाएगी और तभी से यहां पर बेशकीमती हीरा निकलने लगा। इसी से बुन्देलखण्ड की आर्थिक स्थिति सुधरी और राज्य का विस्तार हुआ।