प्रधानमंत्री मोदी की बहुचर्चित सांसद आदर्श ग्राम योजना विवादों से घिरती जा रही है। ऐसा लगता है कि समय के साथ इस योजना के साथ इतने विवाद जुड़ जाएंगे कि भविष्य में इस योजना पर किसी भी प्रकार के सार्थक संवाद की संभवनाए क्षीण हो जाएंगी। वैसे भी इस योजना का प्रारंभ ही विवादों से हुआ है। देश में हर संसदीय क्षेत्र में लगभग एक हजार गांव है, तो कैसे एक गांव को गोद लेकर बाकी गांवों को कथित तौर पर उनके आदर्श स्वरूप के अधिकार से वंचित किया जा सकता है? इस आशय का प्रश्न कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी कर चुके है। यह बिंदु ही देश में लोकतन्त्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। एक ओर हम समानता के अधिकार की बात करते है, किन्तु इस सांसद आदर्श ग्राम योजना में हमारी करनी, इस कथनी से भिन्न नजर आ रही है, क्योंकि एक संसदीय क्षेत्र के इतने सारे गांव में से किसी एक गांव का चयन किस आधार पर होगा इस की भी कोई ठोस नीति नजर नहीं आयी। यह बात और है कि विपक्ष के भी अनेक संसदों ने सरकार का मन और मान दोनों रखने के लिए गांव गोद लेने की प्रक्रिया पूर्ण कर ली है किन्तु विपक्ष के संदेह और सवाल दोनों यथावत् तो है ही सरकार भी अब तक इस सन्दर्भ में मौन व निरूत्तर दिखी है।

हालिया जानकारी और भी आश्चर्यजनक है कि समाजवादी पार्टी अध्यक्ष एवं सदा मुस्लिम हित के संरक्षक की बात करने वाले मुलायम सिंह यादव ने जो एक गांव को गोद लिया है, उस में मुस्लिम आबादी नहीं है। अपितु मुलायम सिंह यादव की समाज के अस्सी प्रतिशत लोग है। ऐसे में बिना मुस्लिम आबादी के गांवों को गोद लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कुछ अन्य भाजपा सांसदों पर प्रश्न खड़ा करने वाली पार्टी के प्रमुख के अपने संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में बसे तमौली गांव के चयन पर प्रश्न उठना स्वाभाविक हैं। इस गांव में यादव समाज के अतिरिक्त पिछड़े एवं अगड़े वर्ग के अन्य समाज तो है किन्तु मुसलमान एक भी नहीं, सो मुलायम की यह मिसाल उनके विरुद्ध मिसाइल के तौर उपयोग की जा सकती है।
मोदी सरकार पर, कांग्रेस सरकार की अनेक नीतियों के अनुसरण करने का आरोप है। चाहे वह अर्थ नीति या विदेशी निवेश की बात हो। अधिकांश स्थानों पर मोदी सरकार का स्वर मनमोहन सरकार से भिन्न नहीं लगा। ऐसे ही कुछ इस सांसद आदर्श ग्राम योजना में भी है। मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार ने वित्तीय वर्ष 2009-10 में प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना प्रारंभ की थी। इस योजना में बहुत साफ तौर पर उन गांवों के विकास की बात थी, जहां अनुसूचित वर्ग की आबादी पचास प्रतिशत से अधिक हो अर्थात ग्राम चयन का आधार बहुत स्पष्ट था, जो मोदी की योजना में स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस सरकार ने सन 2010 में राजस्थान के श्री गंगा नगर से इस योजना का शुभारम्भ भी किया था। इस योजना के अंतर्गत अभी तक देश के अनेक गांवों को करोड़ो रुपये की राशि प्रदान की जा चुकी है, जो शिक्षा,स्वास्थ्य, मनरेगा, निर्मल भारत जैसी अनेक योजनाओं के मद में आदर्श ग्राम के उद्देश्य से खर्च की गई है। ऐसे में मोदी सरकार को अपनी योजना पर उठे सवालों के जवाब के साथ यह भी स्पष्ट करना होगा कि कांग्रेस की प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना पर नई सरकार का क्या रुख है।