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दृष्टि-बाधित दिव्यांग को निजी संस्थान रोजगार दें:राज्यपाल श्री टंडन


भोपाल। राज्यपाल श्री लालजी टंडन ने दृष्टि-बाधित दिव्यांग बच्चों का आव्हान किया है कि वे शक्तियों को पहचान हौसले के साथ आगे बढ़ें। हौसले से बड़ी से बड़ी बाधा को दूर किया जा सकता है। उन्होंने निजी उपक्रमों, उद्यमों और व्यवसायिक संस्थानों के संचालकों से अपील की है कि दृष्टि-बाधित दिव्यांगों को उपयुक्त रोजगार उपलब्ध करायें।श्री टंडन आज दृष्टि-बाधिता निवारण दिवस पर राजभवन में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। राज्यपाल को दृष्टि-बाधित संस्थाओं के छात्रों और पदाधिकारियों ने ध्वज लगाया। राज्यपाल श्री टंडन ने उनको सहायतार्थ राशि भेंट की।

राज्यपाल ने कहा कि मानव शरीर एक खिलौने के समान है। कभी किसी में कुछ कमी रह जाती है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह अनुपयोगी हो गया। महाकवि सूरदास ने अपने मस्तिष्क के हौसले से जिस साहित्य की रचना की है, आज भी सारी दुनिया उसे पढ़ रही है। जरूरत अपने भीतर की शक्तियों को पहचानने की है। जीवन में यदि एक रास्ता बंद होता है, तो कई नये रास्ते खुल जाते हैं। भारतीय शास्त्रों में भी बताया गया है कि अतिइन्द्रिय तीसरा नेत्र होता है। इससे व्यक्ति में इतनी शक्ति जागृत हो जाती है कि व्यक्ति बहुत कुछ देख-समझ लेता है। इस शक्ति को अपने भीतर महसूस और जागृत करने के प्रयास जरूरी हैं।

श्री टंडन ने कहा कि दृष्टि-बाधित कमजोरी और अकेलेपन का अहसास नहीं करें। बहुत सारे लोग हैं, जो उनके साथ-साथ चलने और सहयोग के लिए तैयार हैं। उन्होंने बच्चों को उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएँ दीं और पुनर्वास कल्याण संस्थाओं के सदस्यों और पदाधिकारियों की उनके प्रयासों के लिए सराहना की। उन्होंने दृष्टि-बाधित दिव्यांग पुनर्वास कार्य का प्रोजेक्ट प्रस्तुत करने पर उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया। राज्यपाल ने कार्यक्रम में उपस्थित दृष्टि-बाधित बच्चों और संस्था के सदस्यों,कर्मचारियों के लिए 15 सितम्बर को राजभवन की ओर से भोजन की व्यवस्था संस्था में कराने के निर्देश दिये हैं।

इस अवसर पर नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड के सचिव श्री उदय हतवलने ने संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए दृष्टि-बाधित विद्यार्थियों को 12 वीं शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा में आने वाली समस्याओं की जानकारी दी। संचालन दि ब्लाइंड रिलीफ एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री निसार हुसैन ने किया। आभार श्री जे पी एस अरोरा ने माना।

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