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22 जुलाई राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का अंगीकार दिवस और मेजर ध्यानचंद भारतीय हांकी से जुड़ी तिरंगे की सुनहरी यादें __

नई दिल्ली। आज 22 जुलाई है और आज के  ही दिन ही सन 1947 में  भारतीय संविधान सभा द्वारा  तिरंगे को अंगीकार  किया गया था  यही वह तिरंगा है जिसका  स्वरूप आजादी के पूर्व से बदलते बदलते  तिरंगा  बना जो आज शान से फहरा रहा है और आज  उसके स्वीकार करने की 75 वी वर्षगांठ है जिसे आज हम बना रहे है  और ऐसे शुभ अवसर पर बरबस ही मानस पटल पर वह घटना  अंकित हो जाती है जो 1936 बर्लिन ओलंपिक फाइनल मैच के पहले घटित होती है जब भारत की हांकी टीम को  एक  अभ्यास मैच में जर्मनी के हाथो 4 के मुकाबले 1 गोल से पराजय का सामना करना पड़ा और फिर उसी जर्मनी की टीम से ओलंपिक फाइनल में मुकाबला होना निश्चित हुआ  ।अभ्यास मैच में मिली पराजय , जर्मनी का घरेलू मैदान और घरेलू  दर्शको का जनसैलाब  साथ में दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह जर्मनी के चांसलर  हिटलर  की मैदान में उपस्थिति  भारतीय हांकी टीम के कप्तान मेजर ध्यानचंद के जीवन के सबसे तनावपूर्ण क्षण की   कैसे ऐसी विषम परिस्थितियों में जर्मनी को फाइनल में हम परास्त कर पाएंगे और ऐसी तनाव पूर्ण माहौल में  टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता ने  अपनी जेब से तिरंगा निकाला (जो  उस समय भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का  झंडा था जिसका  ही रूप परिवर्तित होते हुए बाद में  22 जुलाई1947 को तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया )और मेजर ध्यानचंद के  हाथो मे दिया जिसे सभी  खिलाड़ियों ने  अपने हाथों में लेकर करो या मरो की शपथ के साथ वंदे मातरम् गान  को गाते हुए  मैदान में प्रवेश किया और फिर उस तिरंगे की  आन बान शान के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया औरउस  तिरंगे ने भारतीय हांकी खिलाड़ियों को ऐसी ऊर्जा दी की जर्मनी को उसी के मैदान पर उसीके दर्शको की उपस्थिति में तानाशाह हिटलर के सामने 8 के मुकाबले 1 गोल से परास्त करते हुए भारत के लिए ओलम्पिक खेलों में  हांकी स्वर्ण पदक की हैट्रिक लगाते हुए तीसरा स्वर्ण पदक अपने नाम करते हुए विजेता बनने का गौरव हासिल कर लिया  टीम के खिलाड़ी जश्न मनाने में लगे हुए थे ऐसे में किसी की नजर पड़ी की कप्तान ध्यानचंद इस जश्न में नही नही दिखाई पड़ रहे है तब ध्यानचंद को खोजा गया और ध्यानचंद  वहा खड़े  हुए मिले  जहां सभी देशों के झंडे स्टेडियम में  फहर रहे थे ध्यानचंद  की आंखों में से अविरल  आंसू निकल रहे थे उन्होंने स्टेडियम में  फहर रहे विभिन्न देशों के  झंडो की और इशारा करते हुए कहा की  काश मेरा देश आजाद होता और  यूनियन जैक के स्थान पर मेरे देश का प्यारा तिरंगा शान से फहर रहा होता इसके ठीक 11 साल बाद देश 15 अगस्त 1947 को आजाद होता है । ध्यानचंद का यह सपना 12 साल बाद   1948 लंदन ओलंपिक खेलों में भारतीय हांकी टीम  स्वर्ण पदक जीतकर पूरा  करके दिखालती है  जब भारत ने इंग्लैंड की भूमि पर इंग्लैंड को फाइनल मैच में 4 के मुकाबले 0 गोल से हराते हुए स्वर्ण पदक जीतकर तिरंगे को हवा में फहरा दिया जिस देश ने हमे वर्षो तक गुलाम बनाए रखा उसी देश में तिरंगा फहरा कर भारतीय हांकी टीम  इतिहास रच  देती है जिस सपने को मेजर ध्यानचंद ने 1936 बर्लिन ओलंपिक में देखा उसे भारतीय हांकी टीम ने 1948 लंदन ओलंपिक में पूरा कर दिखा दिया ।यही तिरंगे की ताकत है जिसने  महान हांकी खिलाड़ियों को  अपने देश की जीत के लिए हमेशा हमेशा  प्रेरित किया और उन महान हांकी खिलाड़ियों ने भी ओलंपिक खेलों में  देश के तिरंगे  के  मान सम्मान के लिए अपना सब कुछ  लगा दिया  आज उसी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का  अंगीकार दिवस है हम सभी खिलाड़ी गर्व से अपने तिरंगे को सलामी देते है जिसकी गौरवशाली परंपरा को मैदानों पर हमारे खिलाडियों ने आज भी जीवित रखा हुआ है।

हेमंत चंद्र दुबे बबलू

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