चैतन्य भट्ट । आज से तकरीबन तीस साल पहले "मुमताज राशिद" की लिखी और "पंकज उदास" की गाई हुई गजल बड़ी मकबूल हुई थी और आज नहीं उतनी ही मशहूर और लोकप्रिय है, जिसके बोल थे "चांदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल, एक तू ही धनवान है गोरी, बाकी सब कंगाल" उसी तर्ज पर अपने खंडवा के जिला आबकारी अधिकारी "किरार साहेब" ने एक घोषणा कर दी है "एक तू ही "सत्यवादी" है "दरुये" बाकी सब "झूटल्ले"l उनका साफ कहना है कि दारू पीने वाला कभी झूठ नहीं बोलता l मसला ये था कि कलेक्टर ने आदेश दिया कि जब तक कोरोना वेक्सीन के दोनों डोज न लग जाए किसी भी दरुये को शराब की दुकान से दारू न बेची जाए l आबकारी अधिकारी बड़े हीदयालु किसम के इंसान है उन्हें अपनी और अपने प्रदेश की भारी चिंता भी है, उन्होंने सोचा कि यदि दारू की बिक्री कम हो गयी तो प्रदेश के राजस्व का क्या होगा, और अपनी मंथली जो दारू के ठेकेदारों से मिलती है वो भी भी संकट में पड़ जायेगी, सो उन्होंने बकायदा पत्रकारों को बुलाकर घोषणा कर दी कि हम दारू खरीदने आये दरुये से पूछेंगे कि "क्यों भैया आपने वेक्सीन के दोनों डोज लगवा लिए या नहीं" और यदि उसने कह दिया कि हां हमने दोनों डोज लगवा लिए है तो दुकानदार तत्काल से पेश्तर उसके हाथ में पौआ, अध्धी, या बोतल जो उसे लेना होंगे पकड़ा देगा l पत्रकारों ने पूछा क्या आपको विश्वास है कि वो सच बोलेगा क्योकि आप उससे सर्टिफिकेट तो मांग नहीं रहे हो तो किरार साहेब ने क्रांतिकारी ब्यान दे दिया कि दारू पीने वाल आदमी कभी झूठ नहीं बोलता वो हमेशा सच ही बोलता है l अपने को तो लगता है आजकत दरुओं को इतनी इज्जत तो किसी ने नहीं बख्शी होगी, पूरे प्रदेश के दरुओं को इन किरार साहेब के चरणों की धूल अपने माथे पर लगाना चाहिए और घर में उनकी फोटो रखकर सुबह शाम उनकी आरती उतारना चाहिए l किरार साहेब की बात मान ली जाए तो अब तो पुलिस का काम भी आसान हो जाएगा l पुलिस को चोर, उचक्कों, जेबकतरों गिरहकटों और दूसरे अपराध करने वाले अपराधियों से उनका अपराध उगलवाने के लिए "थर्ड डिग्री" का इस्तेमाल करना पड़ता है अब आसानी हो जाएगी, आठ दिन अपने पास रखकर दारू पिला पिला कर टुन्न कर दो उसके बाद उनसे पूछताछ करो एक मिनिट नहीं लगेगा वो अपना अपराध कबूल कर लेगा क्यूंकि किरार साहेब के हिसाब से दारू पीने वाला झूठ नहीं बोलता l किरार साहेब के गणित से तो इस देश में सिर्फ दरुये ही सत्यवादी है बाकि के तमाम तरह के लोग झूठे हैं l इधर सरकार स्कूल के बच्चों से, उनके माता पिता से, सरकारी कर्मचारियों से, रेल यात्रियों से, प्लेन यात्रियों से, कोरोना के दोनों डोज लगवाने का सर्टिफिकेट मांग रही है जिन सरकारी कर्मचारियों ने दोनो डोज नहीं लगवाए हैं उनकी तनख्वाह रोकी जा रही है लेकिन "दरुओं" की जबान पर हंड्रेड परसेंट भरोसा किया जा रहा है , वाह रे आबकारी अधिकारी धन्य हो गया खंडवा जिला ऐसा अफसर पाकर l उधर दूसरी तरफ मांग हो रही है कि किरार साहेब पर कार्यवाही की जाए लेकिन अपनी तो सरकार को यही राय है कि उन पर कोई कार्यवाही न करना वरना पूरे प्रदश के दरुओं के सर्वमान्य नेता बनाकर यदि कंही चुनाव लड़ लिए तो बाकि तमाम उम्म्मीद्वारों की जमानत जब्त होते देर न लगेगी l अभी तक दरुओं को लोग बाग़ नीची निगाह से देखते थे लेकिन किरार साहेब ने एक ही झटके में उनकी इज्जत को आसमाँ पर पंहुचा दिया l इस कलियुग में कौन सच बोलता है , झूठ पर तो पूरी दुनिया टिकी है ऐसे में यदि दरुये सच बोलने के "ब्रांड एम्बेसेडर" बन गए हैं तो इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है इसका मतलब ये भी है कि यदि किसी को सत्यवादी बनना है तो उसको दारू पीना शुरू कर देना चाहिए l
क्या दिन थे क्या दिन आ गए
कहते है कि जब "स्टार" फेवर करते है तो इंसान आसमान की ऊंचाइयों पर पंहुच जाता है और जब वे ही स्टार आँखे फेर लेते है तो आदमी को "अर्श से फर्श" में आने में देर नहीं लगती, अब मुंबई के पुलिस कमिश्नर "परमवीर सिंह" को ही देख लो , क्या जलवा था, क्या रुतबा था, क्या रुआब था, मायानगरी, देश की औद्योगिक राजधानी का बेताज बादशाह पुलिस कमिश्नर, जिसको चाहे अंदर कर दे, जिसको चाहे जेल पंहुचा दे, जिसको चाहे कोर्ट के आदेश से "भगोड़ा" घोषित करवा दे, पूरे प्रदेश की पुलिस जिसको सुबह शाम सलाम ठोकती थी, गाड़ी, बंगला, नौकर, चाकर क्या नहीं था परमवीर जी के पास l जिस "बार" वाले को इशारा कर दे नोटों की गड्डिया बंगले पर पंहुचा देता था, जिस अभिनेता, अभिनेत्री की एक झलक पाने के लिए आम आदमी तरस जाता था उसे एक समन में परमवीर सिंह अपने दरबार में हाजिर करवा सकते थे , तत्कालीन मंत्री जी के कहने पर करोड़ो की वसूली चल रही थी पूरी मुंबई के बार मालिकों से, पर बुरा हो उस "सचिन वझे" का न "एंटीलिया" बिल्डिंग के पास जाता और न मंत्री जी कि और न ही परमवीर सिंह की पोल खुलतीl जब से मामले दर्ज हुए है तब से परमवीर सिंह की वीरता पता नहीं कंहा खो गयी है जिस पुलिस के मुखिया हुआ करते थे उसी पुलिस से भागे, भागे, छिपते लुकते भाग रहे है कोई सहारा देने वाला नहीं है l कोर्ट में जमानत की अर्जी लगाई जा रही है लेकिन कोर्ट भी साफ़ कह रहा है पहले अपनी "लोकेशन" बताओ, पेश हो उसके बाद विचार करेंगे अब वे बेचारे लोकेशन बताएं भी तो कैसे बताएं एक मिनिट नहीं लगेगा पुलिस को उनको उठाने में सचमुच क्या दिन थे और क्या दिन आ गए है इसलिए "बी आर चोपड़ा" की फिल्म वक्त का वो गीत याद आने लगता है "कल जंहा बसतीं थी खुशियाँ आज है मातम वंहा, वक्त लाया था बहारें वक्त लाया है खिजायें, वक्त के दिन और रात, वक्त के कल और आज, वक्त की हर शै गुलाम, वक्त का हर शै पै राज"
सुपर हिट ऑफ़ द वीक
योग शिक्षक ने श्रीमती जी से पूछा "मेरे द्वारा बताये गए योग करने से आपके पति यानी श्रीमान जी की शराब पीने की आदत में कोई बदलाव आया क्या" ?
"बहुत बदलाव आया है अब वो सर के बल खड़े होकर भी शराब पी लेते हैं" श्रीमती जी का उत्तर था