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हर व्यक्ति को हर दिन अपना आत्म चिंतन करना चाहिए : कमलेश कृष्ण शास्त्री

बेगमगंज।  शिव शंकर मंदिर पानी की टंकी के पास वार्ड  मुकरबा में चल रहा श्री रुद्र महायज्ञ एवं श्रीमद् भागवत महापुराण कथा की पूर्णाहुति के दिन पं.कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा - आत्म-चिन्तन, आत्म-अवलोकन के द्वारा हमें अपनी गलतियों से सीखने और अच्छे किए गए कार्य को और श्रेष्ठ करने का अवसर मिलता है। महात्मा बुद्ध का कहना है कि व्यक्ति को जितना कोई बाहरी सिखा सकता है, उससे कहीं अधिक वह अपने स्वाध्याय एवं आत्म- अवलोकन तथा आत्म- चिन्तन से सीख सकता है। इसलिए वह हमेशा कहते हैं - "अप्पो दीपो भव ..." अर्थात्, अपना दीपक स्वयं बनो। अपने बुद्धि, चिन्तन एवं आत्म-अवलोकन से अपने जीवन को प्रकाशित करो। इस प्रकार प्राप्त किया हुआ ज्ञान कभी विस्मृत नहीं होता और हमेशा व्यक्ति को सही निर्णय लेने में सहायक होता है, क्योंकि यह गहन अनुभव चिन्तन और आत्म- अवलोकन पर आधारित है। आत्म-अवलोकन के द्वारा सीखने की प्रक्रिया ऐसी होती है कि हम उसमें शान्त भाव से बैठ कर किसी समस्या या बिन्दु के बारे में चिन्तन कर सकते हैं। शान्ति से चिन्तन करने पर हमें उसके समस्त गुण-दोष समझ में आ जाते हैं। हमारे ऊपर मानसिक दबाव न होने के कारण हम उस अनुभव या चिन्तन से पूर्ण होकर स्थित हो सकते हैं। इस प्रकार आत्म-अवलोकन के द्वारा हमारी समझने की भावनात्मक क्षमता और विश्लेषण करने की बौद्धिक क्षमता दोनों का विकास होता है। उदाहरण के लिए भारतीय चिन्तन परम्परा में मन को एकाग्र करने के लिए ध्यान की जो पद्धति विकसित है, वह इसी का प्रकट रूप है। जिसमें हम शान्त भाव से स्थित बैठकर किसी समस्या या गहन चिन्तन, विश्लेषण व समाधान करते हैं। किन्तु, यह तभी सम्भव है जब हम इसे बिना उद्वेग अथवा मानसिक दबाव के कर सकें । यज्ञ के मुख्य यजमान मुन्ना लाल पंडा  सहायक यजमान नत्थू लाल, भागवत कथा के मुख्य यजमान गब्बर सिंह जाट थे जिन्होंने समापन पर व्यासपीठ की  आरती की।

रूद्र महायज्ञ श्रीमद् भागवत कथा



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