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कोच हैं नहीं, करोड़ों की पेंट मशीन खरीदी

सवारी डिब्बा मरम्मत कारखाना के लिए 14 करोड़ से खरीदा पेंट लाइन सिस्टम
रोजाना दो डिब्बा उत्पादन की क्षमता और मशीन खरीदी 14 डिब्बे के हिसाब से
दो साल बाद भी बिना काम अलग-अलग हिस्सों में रखा गया है पन्नियों में पैक


ब्यूरो, भोपाल/जबलपुर.

सवारी डिब्बा मरम्मत कारखानाआर्थिक संकट से जूझ रहे रेलवे को करोड़ों का चूना लगाने की यह बानगी है। रेल कोच रीहेबिलेशन वर्कशॉप (सीआरडब्ल्यूएस) के लिए 14 करोड़ से पेंट लाइन सिस्टम खरीदा गया, जिसकी क्षमता प्रतिदिन 14 कोच पेंट करने की है। हालांकि, फैक्ट्री की क्षमता प्रतिदिन डेढ़ से दो कोच उत्पादन की होने से दो साल बाद भी पेंट लाइन सिस्टम डिब्बाबंद पड़ा है। हद तो यह है कि, इससे पहले खरीदा गया सिस्टम भी गारंटी पीरियड में ही नाकारा साबित होने के बाद लाखों रुपए की चपत के बाद कंडम घोषित करके कबाडे में बेचा जा चुका है।
सीआरडब्ल्यूएस के लिए वर्ष 2009-10 में पेंट लाइन सिस्टम खरीदने की कवायद शुरु हुई। करीब 14 करोड़ रुपए से सिस्टम खरीदा गया। इस सिस्टम की पैकिंग अभी तक नहीं खुल सकी हैं और रेल कोच फैक्ट्री के अंदर शेड में पन्नियों से पैक रखा हुआ है। इसको असेंबल किया जाकर वर्किंग में लाने के लिए बीते दो साल में कुछ भी नहीं किया गया।

क्षमता का नहीं रखा ध्यान
रेल कोच फैक्ट्री की क्षमता प्रतिदिन डेढ़ से दो कोच उत्पादन की है, लेकिन रेलवे के अधिकारियों ने प्रतिदिन 14 कोच पेंट करने की क्षमता वाले सिस्टम को खरीद ड़ाला। वैसे भी कोच फैक्ट्री की क्षमता अगले डेढ़ दशक में भी 12 कोच प्रतिदिन उत्पादन की नहीं हो सकेगी। ऐसे में करोड़ों के पेंट लाइन सिस्टम का उपयोग होने के आसार दूर-दूर तक नहीं है। इसके अलावा इस भारी भरकम सिस्टम को अगर चालू किया भी गया तो इससे फायदा से ज्यादा नुकसान होगा। इस सिस्टम की पूरी क्षमता से पेंट करने के बजाय सिर्फ एक-डेढ़ कोच में पेंट करके बंद करना पडेÞगा, जिसके नतीजे में सिस्टम जाम हो जाएगा। इसके बाद इसके पाइप और नोजल को साफ करने के बाद ही चालू किया जा सकेगा, जिसमें 25 से 30 लीटर थिनर का खर्च बेवजह होगा।

पुरानी मशीन कबाडे में बेची
रेल कोच फैक्ट्री के लिए 1990 में भी एक पेंट मशीन करीब 55 से 60 लाख रुपए में खरीदी गई थी। इस मशीन की क्षमता भी प्रतिदिन चार कोच पेंट करने की थी, लिहाजा इस मशीन का पूरी क्षमता से उपयोग नहीं हो सका। हद तो यह है कि गारंटी पीरियड में ही यह मशीन खराब हो जाने के बाद भी सुधरवाया नहीं जा सका। लिहाजा, मशीन साल दर साल जंग लगने और बंद पड़ी रहने से कंडम हो गई और वर्ष 2011 में इसको कबाडेÞ में बेच दिया गया।

यूनियन ने किया था विरोध
बिना जरुरत 14 करोड़ से पेंट लाइन सिस्टम खरीदने का पता चलते ही वेस्ट सेंट्रल रेलवे एंप्लाइज यूनियन (डब्ल्यूसीआरईयू) ने विरोध किया था। यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष रवि जायसवाल ने रेल जोनल मुख्यालय, जबलपुर में हुई पीएनएम (स्थाई वार्ता तंत्र) में खरीदी के औचित्य का सवाल खड़ा करते हुए पूरे मामले में करोड़ों की गड़बड़ी के आरोप लगाते जांच की मांग की थी। इसके बाद जांच और कार्रवाई का निर्णय हुआ था, लेकिन बाद में पूरे मामले को दबा दिया गया।

जवाब देने में टाल मटोल
रेलवे के जिम्मेदार अधिकारी इस मामले में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। इस बारे में जनरल मैनेजर, जबलपुर एसके आर्या से पूछने पर जवाब था कि खरीदी उनके कार्यभार ग्रहण करने से पूर्व की है, इसलिए इस बारे में कुछ नहीं बता सकते। इस बारे में सीपीआरओ (मुख्य जनसंपर्क अधिकारी) पियूष माथुर ही बता सकेंगे। माथुर का जवाब है कि मामला सालभर पुराना है और अधिकारी बदल चुके हैं, ऐसे में मूल फाइल देखने के बाद बताएंगे कि जांच और कार्रवाई कहां अटकी पड़ी है।





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