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वक्त के पन्नों में गुम होती विश्व विरासत

स्विटजरलैंड के बाद दुनिया में सिर्फ भोपाल में है तीन तालाबों की श्रृंखला
अतिक्रमण और प्रदूषण की चपेट में आने से बर्बाद हो रहे हैं तीनों तालाब
सिद्दीक हसन खां तालाब का लैंड डायवर्जन नहीं होने के बाद भी प्लाटिंग
बिना बिल्डिंग परमीशन हो रहे अवैध निर्माणों पर नगर निगम ने आंखें मूंदी
7 साल से हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमें में नगर निगम ने नहीं रखा सही पक्ष



ब्यूरो, भोपाल
दुनिया की अनूठी जल संरचना धीरे-धीरे इतिहास के पन्नों में सिमटने की कगार पर है। स्विटजरलैंड के बाद सिर्फ भोपाल में ही एक के बाद एक तीन तालाबों की श्रृंखला है। जी हां, ताजुल मसाजिद के पीछे मोतिया तालाब, नवाब सिद्दीक हसन खां तालाब और मुंशी हुसैन खां तालाब की संरचना के समान सिर्फ स्विटजरलैंड में ही एक के बाद एक तीन तालाब हैं। ऐसी नायाब धरोहर अब अपनी अंतिम सांसे गिन रही है। नवाब सिद्दीक हसन खां तालाब में तेजी से मलबा भरकर अतिक्रमण किया जा रहा है। फिलहाल, बिना लैंड डायवर्जन और बिल्डिंग परमीशन के ही तालाब को पूर कर डेढ़ सौ से ज्यादा मकान बन चुके हैं। इसके बाद भी तालाब को बचाने के बजाय हाईकोर्ट के स्टे की आड़ ली जाती है, जबकि हाईकोर्ट ने तालाब को बचाने के निर्देश दिए हैं। 


वक्त के पन्नों में गुम होती विश्व विरासत


प्रशासनिक और राजनीतिक घालमेल के कारण दुनिया की नायाब जल संरचना को भूमाफिया धीरे-धीरे करके लीलता जा रहा है। इसके बाद भी जिला और नगर निगम प्रशासन कार्रवाई के बजाय कानूनी नुक्ताचीनी में लगा है। दरअसल, हाईकोर्ट में तालाब के मालिकाना हक को लेकर विचाराधीन याचिका में बीते सात साल से नगर निगम और सरकार ने असलियत पेश ही नहीं की। विश्व की अनूठी जल संरचना को बचाने के लिए तथ्य पेश करने के बजाय निगम प्रशासन का सारा जोर मालिकाना हक जताने पर रहा है। वैसे भी नवाब सिद्दीक हसन तालाब की प्लाटिंग करके बेचने के कारोबार में राजस्व और नगर निगम अधिकारियों की शुरु से ही संदिग्ध भूमिका रही है।
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ऐसा है वॉटर मैनेजमेंट
एक के बाद एक तीन तालाबों का निर्माण और वॉटर मैनेजमेंट शाहजहां बेगम की देन हैं। ईदगाह हिल्स का पानी टनल के जरिए बेनजीर कॉलेज के ग्राउंड के नीचे से होते हुए मोतिया तालाब में आता है। यहां पर सावन भादो घाट बना हुआ था, जहां पर पानी सीढ़ियों से होते हुए तालाब में गिरता था। यहीं पर विदेश से लाई गई रंगीन मछलियां तैरती रहती थी, जिनको निहारने भीड़ लगती थी। मोतिया तालाब का पानी तीन टनल के जरिए बांध के बाद बने नवाब सिद्दीक हसन खां तालाब में गिरता था। इसके बाद ओवर फ्लो होते ही मुंशी हुसैन खां तालाब में जाता था और इसके बाद नाले से निकलता हुआ तलैया (नवबहार फल सब्जी मंडी) से होते हुए भारत टाकीज के सामने से ग्रांड होटल ओर कैपिटल के बीच से गुजरते हुए पातरा में मिलता था। यह नाला पहले छोटी नदी की तरह था, अब अधिकांश कवर्ड हो चुका है ओर पक्का बना कर ढंक दिया गया है। इन तीन तालाबों के कारण ही भोपाल का वॉटर लेबल काफी ऊपर था और महज 20 से 25 फुट की बोरिंग के बाद ही पानी निकल आता था। फिलहाल, मोतिया तालाब की तीन में से दो टनल को निगम अफसरों की मिलीभगत से बंद किया जा चुका है और सिर्फ एक ही टनल तीन मोहरा की ओर चालू है, जिससे पानी सिद्दीक हसन तालाब में गिरता है। इसके अलावा एक कुआं भी था, जिसको मलबा से भरने के बाद एलबीएल अस्पताल बनाया जा चुका है।
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कौन थे नवाब सिद्दीक हसन खां
नवाब सिद्दीक हसन मूलत: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रहने वाले थे, जोकि अपने समय के जाने माने शिक्षा विद और लेखक थे। उनसे प्रभावित होकर तत्कालीन भोपाल नवाब शाहजहां बेगम ने निकाह किया था। इसके बाद उनको नवाब का खिताब देकर नूरमहल और आस पास का क्षेत्र दिया गया था। शायर और इतिहासविद् महमूद रशीद बताते हैं कि, बेगम से मिलने के लिए नवाब सिद्दीक हसन उस समय नूरमहल से तीन मोहरा तक एक डिब्बे की ट्रेन में जाते थे, जिसको लोग धक्का देकर दौड़ाते हुए ताजमहल तक ले जाते थे। इसी कारण नूरमहल से ताजमहल तक जाने वाली सड़क को ठेले वाली सड़क कहा जाता था। इसके किनारे शरीफे के पेड़ों की घनी बगिया थी। इसी रेलवे ट्रैक पर आज निजी अस्पतालों की लाइन खड़ी है।
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और बिक गया नवाब का तालाब
नवाब सिद्दीक हसन खां के वंशज सहरनपुर जाने से पहले तालाब और बाग उमराइया बेच गए थे, जोकि जफरयाब अली खान, खुरशीद अली खान और आमना बेगम ने खरीदा था। आमना बेगम के हिस्से में बाग उमराइया का हिस्सा आया था, जिसमें तालाब के ऊपर का हिस्सा आया था। इसमें शरीफे के पेड़ लगे थे और तालाब तक जाने के लिए नीचे तक सीढ़ियां बनी थीं। फिलहाल, बाग उमराइया में अशोका कालोनी डेवलप हो गई है, जोकि नूरमहल का हिस्सा है। हालांकि, बिना लैंड डायवर्जन के डेवलप की गई इस कॉलोनी के अधिकांश मकान बिल्डिंग परमीशन की शर्तों का उल्लंघन करके बनाए गए हैं, लेकिन नगर निगम वाले दो-चार साल में एक बार नोटिस देकर वसूली करके भूल जाते हैं।
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कोर्ट ने कहा, तालाब को बचाओ
हाईकोर्ट ने अपने 2005 के स्थगन आदेश में साफ कहा है कि, जो मकान बन गए हैं उनको न तोड़ा जाए, न हटाया जाए। कोर्ट ने कहा था कि, बगैर परमीशन बने मकानों की कंपाउंडिंग की जाए। इसके बाद जो भी तालाब बचा है तो उसकी नियमित सफाई करवाई जाए और तालाब को बेजा कब्जों से बचाने के लिए फैंसिंग करवाई जाए। इसके बाद भी निगम प्रशासन ने न तो तालाब की फैंसिंग करवाई और न ही तालाब को पूरकर हो रह कब्जों को रोकने की कोशिश ही की। इसी का नतीजा है कि, तालाब का रकबा 11 एकड़ 99 डेसीमल से घटकर सिर्फ 4 एकड़ बचा है, इसके बाद भी तालाब को बचाने की कोई पहल नहीं हो रही है।
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बन चुके है डेढ़ सौ अवैध मकान
तालाब और आस पास की जमीन को आवासीय किए जाने के लिए लैंड डायवर्जन का आवेदन कलेक्टर कोर्ट में लंबित होने के बाद भी तालाब में बिना किसी सक्षम परमीशन के 157 मकान बन चुके हैं। गौरतलब होगा कि, नगर निगम ने करीब 15 साल पहले तालाब के किनारे पांच मकानों के निर्माण की परमीशन जारी की थी। इस बारे में नगर निगम और जिला प्रशासन को रिश्वत देकर नियम विरुद्ध परमीशन देने की शिकायत मिलने के बाद जांच शुरु होते ही फिर किसी को परमीशन जारी नहीं की गई। इसके बाद भी बाग उमराइया और तालाब में प्लाट काटने और अवैध निर्माण का सिलसिला नहीं थमा। फिलहाल, तालाब को पूर कर करीब डेढ़ सौ मकान बन गए हैं और बाकी हिस्से को मलबा भर कर पूरा जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि, पूरे तालाब के प्लाट काटे जाकर बेचे जा चुके हैं और सिर्फ दो प्लाट ही बचे हैं। चूंकि पानी लबालब रहने के बाद भी प्लाट काटे गए तो किसका प्लाट कहां पर है और बाकी दो प्लाट की नौइयत के बारे में किसी को पता नहीं है।
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जनहित याचिका का फंडा
हाईकोर्ट में सिद्दीक हसन खां तालाब को बचाने के लिए एक जनहित याचिका भी विचाराधीन है। इसमें चौंकाने वाला पहलू यही है कि, याचिकाकर्ता चौधरी नूर जमाल निवासी अशोका गार्डन का कोई अता पता नहीं है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को अदालत के समक्ष पेश होने का आदेश भी दिया, लेकिन चौधरी नूर जमाल कभी भी कोर्ट के सामने पेश नहीं हुआ। इसके बाद कोर्ट का नोटिस तामील करवाने के लिए नगर निगम और पुलिस बल ने अशोका गार्डन का चप्पा चप्पा छान मारा, लेकिन चौधरी नूर जमाल का पता नहीं चल सका। याचिका में नवाब सिद्दीक हसन तालाब को अतिक्रमण और प्लाटिंग करके बेचने से बर्बाद होने से बचाने की मांग की गई है। याचिका के तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने इसकी सुनवाई जारी रखी है। दूसरी ओर, सूत्रों का कहना है कि जनहित याचिका के पीछे भू माफिया ही है। अगर तालाब भर जाए तो भी खरीददारों को पूरे प्लाट नहीं मिल सकेंगे, क्योंकि एक ही प्लाट कई बार बेचा गया है।
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नगर निगम जानबूझकर हारा
तालाब को बचाने के लिए हाईकोर्ट के सामने नगर निगम ने ईमानदारी से पक्ष नहीं रखा। विश्व की अनूठी धरोहर और पानी भरा तालाब होने के बाद भी इसको भरकर मकान बनाने से होने वाली अपूरणीय क्षति के बारे में कोर्ट के सामने पूरी तस्वीर नहीं रखी गई। निगम प्रशासन इस तालाब पर मालिकाना हक जताने की कोशिश में जुटा हुआ है। खसरा नंबर 160 रकबा 11.99 डेसीमल पर म्यूनिसपल बोर्ड इंद्राज होने के आधार पर निगम ने मालिकाना हक का केस दायर किया है। हालांकि, तालाब के कथित खरीददारों के पास मालिकाना हक की अदालती डिक्री 1969 और 84 की है। अदालत से डिक्री होने के बाद सेटिंग के चलते नगर निगम ने अपील नहीं की। हालांकि, निगम प्रशासन चाहता तो डिक्री के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका पेश हो सकती थी, लेकिन निगम के विधि, राजस्व और भवन अनुज्ञा शाखा की मेहरबानी से अपील की फाइल ही नहीं बनी। कानूनविद कहते हैं कि, हाईकोर्ट के सामने सारे तथ्य और जमीनी हकीकत पेश करके जल स्त्रोत को बचाने के बारे में फरियाद की जाए तो कोर्ट का स्टे हटना तय है।
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हर प्लाट के डेढ से दो लाख
तालाब को भरने के लिए ट्रकों और डंपरों में मलबा भर कर लाया जाता है। इसकी शिकायत होने के बाद भी नगर निगम, जिला प्रशासन और पुलिस कार्रवाई नहीं करती। नगर निगम के अधिकारी ही नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि, तालाब को पूरने और अवैध निर्माण करवाने के बदले प्रति प्लाट डेढ़ से दो लाख रुपए की चढ़ौती की जाती है। इसी से नगर निगम की भवन अनुज्ञा शाखा और अतिक्रमण विरोधी दस्ता आंखें मूंदे रहता है। गौरतलब होगा कि, नगर निगम परिषद के तत्कालीन राजस्व विभाग के चेयरमैन फतेहउल्लाह खान ने तालाब में प्लाट काटे जाने का विरोध करते हुए असली दस्तावेज पेश करते हुए धरोहर होने से तालाब को बचाने के लिए आवाज उठाई थी। इस पर तत्कालीन महापौर आरके बिसारिया ने फाइल चलवाई थी, लेकिन बिसारिया का कार्यकाल खत्म होते ही निगम प्रशासन के ढुलमुल रवैए और जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत के चलते कार्रवाई ठंडे बस्ते में दबा दी गई।
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लौटना पड़ा था निगम अमले को
तालाब को पूर कर बिना नगर निगम की सक्षम परमीशन के बनाए गए करीब डेढ़ सौ मकानों को तोड़ने अतिक्रमण विरोधी अमला 2011 में पहुंचा था। इसका विरोध करते हुए मरहूम शहर काजी फैजल कासमी और विधायक आरिफ अकील धरने पर बैठ गए थे। इससे स्थिति तनावपूर्ण हो गई थी और निगम अमले को उल्टे पांव लौटना पड़ा था।
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रजनीश श्रीवास्तव, निगमायुक्त से सीधी बात
-हाईकोर्ट के स्टे का पालन नहीं किया जा रहा है?
-पूरे प्रकरण की समीक्षा करवाएंगे और कोर्ट के आॅर्डर का पालन नहीं करवाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी।
-तालाब को बचाने के लिए क्या योजना है?
-अभी तो कोर्ट के सामने जमीनी हकीकत बताकर स्टे वैकेट करवा कर अवैध निर्माण जल्द से जल्द हटवाने के प्रयास होंगे। तालाब को पूरने वाले और बेजा निर्माण करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई जाएगी। बंद की गई टनल भी चालू करवाएंगे।
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तीन तालाबों की संरचना को बचाने के लिए प्रशासनिक सक्रियता के साथ ही सामाजिक दबाव भी जरुरी है। हाईकोर्ट से स्टे लेकर मामले को लंबित रखने को नाकाम करने के लिए सही तथ्य पेश किए जाएं, जिम्मेदार अधिकारियों पर लापरवाही के लिए कार्रवाई हो और अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कठोरता से पेश आया जाए।
-कृपाशंकर शर्मा, पूर्व मुख्य सचिव
 

प्रशासन की लापरवाही से विश्व की धरोहर बर्बाद हो रही है। नगर निगम और जिला प्रशासन की ढ़ील का फायदा अतिक्रमणकारी उठा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि बिना किसी मजहबी या सियासी दबाव में आए सख्ती से कार्रवाई करके तालाब को बचाए। सिर्फ तालाब में बने मकान ही नहीं, बल्कि किनारों पर बने अस्पताल भी हटाएं जाएं।
-अब्दुल जब्बार, संयोजक, सद्प्रयास

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