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मछली माफिया के आगे घुटने टेके

प्रतिबंधित मछलियों का धड़ल्ले से हो रहा है पालन
पर्यावरण विनाश के साथ ही फैल रही हैं बीमारियां



ब्यूरो, भोपाल

जिले में मछली माफिया हावी है, जो सरकार द्वारा वंशानुगत मछुआरों के लिए बनाई गई योजनाओं का बेजा फायदा उठा रहा है। हाल ही में जांच में फर्जी सहकारी समिति बनाकर कलियासोत डेम में मत्स्याखेट का दस साल का पट्टा लेने की साजिश का भंड़ाफोड़ हुआ है। इसके बावजूद मछली पालन विभाग और सहकारिता विभाग आपस में एक-दूसरे की जिम्मेदारी बताकर पल्ला झाड़ने में लगे हैं।


मछली माफिया के आगे घुटने टेके
कलियासोत डेम में दस साल के लिए मत्स्याखेट का पट्टा लेने के लिए तीन सोसायटियों-चंद्रकला मत्स्योद्योग सहकारी समिति, नवयुवक सहकारी समिति और मां भवानी सहकारी समिति ने आवेदन किए थे। इनमें से चंद्रकला सोसायटी और उसकी अध्यक्ष रजनी शर्मा का आवेदन पर ई-1-150 पता दर्शाया गया था। इस बारे में जिला पंचायत सदस्य मधु वशिष्ठ ने शिकायत की, तो जिला पंजीयक, सहकारिता ने विभागीय अंकेक्षक सुधाकर पांडे से जांच कराई। श्री पांडे ने चार मार्च को जांच रिपोर्ट सौंप दी। इसमें खुलासा किया गया है कि सोसायटी का कोई पता ठिकाना नहीं है और अध्यक्ष रजनी शर्मा नाम की महिला कभी ई-1-150 पर नहीं रही। इस पते पर वर्षों से महावीर सुराणा रहते हैं और रजनी शर्मा को पूरे इलाके में कोई जानता तक नहीं है। इसी तरह समिति के बाकी सदस्यों का भी पता नहीं चला। इस खुलासे के बाद मछली पालन विभाग और सहकारिता विभाग मामले की लीपापोती में जुट गए हैं। चंद्रकला सोसायटी के नाम पर पट्टा लेने वालों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई टाली जा रही है। उधर, फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद बाकी दोनों समितियों की भी जांच की गई, जिसमें पता चला कि नवयुवक समिति के सदस्य पहले से ही भोजपाल समिति के भी सदस्य हैं। नियमत: एक समिति के सदस्य अगर दूसरी समिति में भी सदस्य हैं, तो समिति अपात्र हो जाती है। ऐसे में एकमात्र बची मां भवानी समिति को जिला पंचायत की कृषि स्थाई समिति ने 26 फरवरी को पट्टा दे दिया।

जारी नहीं हुए आदेश
तीन समितियों द्वारा दावेदारी के बाद जांच में सामने आए नतीजों के कारण मां भवानी मत्स्याखेट समिति को पट्टा दिए जाने की अनुशंसा जिला पंचायत की कृषि स्थाई समिति ने कर दिए थे। पंचायती राज अधिनियम के अनुसार कृषि स्थाई समिति की अनुशंसा अंतिम होती है और इसके बाद आदेश जारी हो जाना चाहिए। इसके बाद भी आज तक पट्टा जारी करने के आदेश जारी नहीं हो सके हैं। इस देरी के पीछे मछली माफिया की भूमिका बताई जा रही है। बताया जाता है कि मछली माफिया अब चंद्रकला सोसायटी में नए सदस्यों के बीच चुनाव कराकर फिर से पट्टे की दावेदारी करने की तैयारी में है। हालांकि, पूर्व में फर्जी सोसायटी के आधार पर पट्टा लेने की साजिश का खुलासा होने के बाद आपराधिक कार्रवाई की जाना चाहिए थी, लेकिन सांठगांठ के कारण फाइल ठंडे बस्ते में है। 


यह है मत्स्योद्योग नीति
मत्स्याखेट के लिए पट्टे पर जलाशय या बांध को दिए जाने के लिए नियम हैं कि समिति पुरानी, कार्यशील हो तथा वंशानुगत मछÞआरे ही सदस्य हों, जो कि बेरोजगार हों। वंशानुगत मछुआरों में उनको माना जाता है, जोकि जलीय स्त्रोतों के किनारे बसते हों और जल पर आधारित जीवन यापन करते हों। इनमें भोई, ढीमर, कहार, बाथम, माझी, कश्यप, रायकवार आदि आते हैं। नियमत: गैर मछुआरों को पट्टा नहीं दिया जा सकता। 


फर्जी सोसायटियों का जाल
राजधानी के आस पास जलाशयों और तालाबों में मत्स्याखेट का पहले ओपन आॅक्शन के जरिए कांट्रेक्ट दिया जाता था, लेकिन इस प्रक्रिया में गरीब मछुआ जाति वाले भाग ही नहीं ले पाते थे। इसी कारण प्रदेश सरकार ने नई मछली पालन नीति बना कर सिर्फ वंशानुगत मछुआ जाति के सदस्यों वाली सहकारी समितियों के जरिए पट्टे पर दिया जाने लगा। मछली माफिया ने प्रक्रिया में भी छेद ढूंढ़ लिए और सिर्फ एक या दो मछुआ जाति के सदस्यों वाली समितियों के जरिए पट्टे पर तालाब ले लिए। ऐसी समितियां वैध नहीं होने के बाद भी मछली पालन विभाग के कतिपय अधिकारियों की मिलीभगत के कारण कार्रवाई नहीं हो सकी। मछली पालन विभाग के सूत्रों के अनुसार अगर सोसायटियों का सत्यापन हो जाए तो 80 फीसद सोसायटियां फर्जी निकलेंगी। करीब आधा दर्जन सोसायटियों के खिलाफ तो भोपाल जिला रजिस्ट्रार कार्यालय में ही शिकायतें जांच के नाम पर लंबित हैं। 


कथन
अधिकारियों की मिलीभगत से जिले में मछली माफिया हावी है। फर्जी सोसायटियों के जरिए मत्स्याखेट के पट्टे लिए जाते हैं। इससे असली गरीब मछुआरों का हक मारा जा रहा है।
-मधु वशिष्ठ, सदस्य, जिला पंचायत
 

फर्जी सोसायटी के जरिए पट्टा लेने की कोशिश अपराध है। विभाग से पट्टा लेने वाली समितियों की असलियत के साथ-साथ संबंधित अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।
-डीके बाफना, पूर्व संचालक, मत्स्योद्योग
 

फर्जीवाड़ा तो हुआ है, लेकिन यह हमसे संबंधित नहीं है। सहकारिता विभाग ने जांच की है और आगे की कार्रवाई भी उनको ही करनी है। यदि शिकायत मिलती है तो कार्रवाई के लिए सहकारिता विभाग को भेज देंगे।
-आरएन अग्निहोत्री, सहायक संचालक, मत्स्योद्योग
 

यह सही है कि जांच में फर्जीवाड़ा उजागर हुआ है और चंद्रकला सोसायटी का अस्तित्व ही नहीं था। इस बारे में जांच रिपोर्ट का परीक्षण कराने के बाद संबंधितों पर हर हाल में आपराधिक कार्रवाई की जाएगी।
-आरके विश्वकर्मा, उपायुक्त, सहकारिता

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