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युगावतार बहाउल्लाह

बहाई धर्म के संस्थापक युगावतार ‘बहाउल्लाह’ के जन्म दिवस पर उनके जीवन और अवतरण पर प्रकाश डालने का प्रयास


सच्चिदानंद पटेल,
सचिव,
क्षेत्रीय बहाई परिषद मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़



युगावतार बहाउल्लाह
बहाउल्लाह ईरान के राजदरबार के एक प्रसिद्ध मंत्री के घर पैदा हुए थे। बहाउल्लाह का नाम मिजर्Þा हुसैन अली था। जैसे-जैसे बहाउल्लाह बड़े हुये, उनकी महानता के लक्षण स्पष्ट होते चले गये। जब वह युवावस्था में पहुँचे तब वह अपनी प्रखर बुद्धिमत्ता, उच्च चरित्र, परोपकारिता और दयालुता के लिये प्रख्यात हो गये थे। वह गूढ़ से गूढ़ समस्या को सुलझाने की क्षमता रखते थे और विकट सवालों के उत्तर दे दिया करते थे। अपनी असाधारण क्षमताओं के बावजूद उन्होंने कभी भी किसी पद अथवा प्रसिद्धि की कामना नहीं की, जिस समय उनके पिता का स्वर्गवास हुआ वे 22 वर्ष के थे, तब बहाउल्लाह को राजा के दरबार में उनका पद-भार ग्रहण करने के लिये कहा गया, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया।
बहाउल्लाह उस समय तेहरान में थे, जब ईशदूत बाब ने शीराजÞ में अपने प्रथम शिष्यों के सामने अपने ध्येय की घोषणा करतें हुए बहाउलाह के बारे में बता दिया था। यह नवीन संदेश बहाउल्लाह तक बाब के प्रथम शिष्य द्वारा पहुँचा और उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के इस धर्म को स्वीकार कर लिया। जबकि, उनकी इससे पूर्व कभी बाब से भेंट भी नहीं हुई थी। तब उनकी आयु 27 वर्ष थी।
बाब के उद्देश्य को अपनाकर बहाउल्लाह उनकी शिक्षाओं को फैलाने के लिए उठ खड़े हुए और अपने अनुयायियों के कष्टों में हिस्सा बाँटने लगे। बहुत शीघ्र ही उनकी सभी सम्पत्ति जब्त कर ली गई और उन्हें एक भूमिगत काल-कोठरी में, जिसका नाम ‘सियाचाल’ था, डाल दिया गया। वहाँ उनके साथ एक सौ पचास डकैत तथा खूनी बंद थे और केवल एक ही द्वार था जो प्रवेश मार्ग था। इस घिनौने स्थान पर उन्हें चार महीने तक रखा गया, भारी जंजीरों का बोझ उन्हें इस अंतराल में अपनी गर्दन पर ढोना पड़ा था जिसके चिन्ह उनके शरीर पर पड़ गये, जो उनके अंतिम समय तक रहे। चार महीने के बाद बहाउल्लाह अत्यंत बीमार पड़ गये। उनके शत्रुओं ने यह सोचा कि अब उनकी मृत्यु हो जायेगी, उन्हें जेल से रिहा कर दिया। इसके साथ ही उनको निर्वासित भी कर दिया गया। उनके प्रेम के वशीभूत अनेकों ने स्वेच्छा से उनके साथ निर्वासन पसंद किया।
बहाउल्लाह बगदाद में दस वर्षों तक निर्वासित रहे। वह यहां आये थे पूरी तरह से अस्वस्थ, भौतिक साधनों से च्युत और एक विधर्मी के रूप में। उनके पास कुछ भी नहीं था और उनके शत्रुओं ने उन्हें धर्मद्रोही की संज्ञा दी थी, परन्तु कुछ ही दिनों में सभी प्रकार के, सभी वर्गों के लोग उनके पास आने लगे। पास और दूरदराज की जगहों के सभी लोग अपनी जाति, वर्ण और धर्म के भेद-भाव भुलाकर उनके उपदेश सुनने के लिए साथ बैठने लगे। एक ऐसे समय जब धार्मिक कू्ररता अपने चरमोत्कर्ष पर थी और विभिन्न मतों के लोग कभी मैत्रीपूर्ण ढंग से नहीं मिलते थे, बहाउल्लाह का घर एकमात्र ऐसा स्थान था, जहाँ वे परस्पर भाइयों की तरह बैठते थे।
बहाउल्लाह के शत्रुओं के लिए ये सब असहनीय था, क्योंकि उनका मानना था कि, बाब द्वारा शुरू किया आन्दोलन उनके मध्य से जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया गया था। हर संभव साधन द्वारा वे पूरी शक्ति लगाते रहे जब तक वे राज्य पर दबाव डालकर बहाउल्लाह को उनके अपने देश से और दूर भेजने में सफल न हो गये। एक आज्ञा पारित हुई, जिसके अंतर्गत उन्हें तुर्की में कान्सटेन्टिनोपल में निर्वासित कर दिया गया। बगदाद से विदाई के दिन सैकड़ों लोग अश्रुपूर्ण आंखें लिए उनके घर के चारों ओर खड़े थे।
कान्सटेन्टिनोपल जाने से पहले बहाउल्लाह बगदाद के बाहर सुन्दर बगीचे में बारह दिनों तक रहे। एक सुन्दर स्थान पर, जो गुलाबों की मधुर सुरभि से आप्लावित था और कोयल के तरानों से गुंजित था, उनके लिए शामियाना खड़ा कर दिया गया था। उनके अनेक मित्रों का हृदय उत्तेजना से भर गया था जब वे बहाउल्लाह को विदाई देने पहुँचे थे। उन्हें इस बात का पता न था कि अनेक विपत्तियाँ बहाउल्लाह पर मंडरा रही हैं और बहाउल्लाह के जाने के बाद उनका क्या होगा, किन्तु उनका दु:ख अधिक समय के लिए नहीं था। अब ऐसा समय था जब प्रतीत हो रहा था कि दुनिया ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है, परन्तु वह क्षण आ गया था जब उनको उस रहस्य के आवरण को हटा देना था जो उनके ‘अवतार’ को ढके हुए था और अपने सम्पूर्ण तेज और यश के साथ प्रकट होना था। उन्होंने घोषित किया कि वे ही वह महान् शिक्षक हैं जिसके आगमन की भविष्यवाणी संसार की सभी धार्मिक पुस्तकों में है, जिसके आगमन के लिए बाब ने मार्गनिर्माण किया था और जिसके लिए उन्होंने अपने जीवन का बलिदान कर दिया था।
कान्सटेन्टिनोपल में उनका निर्वासन चार माह से अधिक नहीं रहा। इस बीच शहर के ढेरों प्रभावशाली व्यक्ति उनके प्रभाव में आ गये। फिर उन्हें और दूर एड्रियानोपल भेज दिया गया। यहां वे लगभग पांच वर्षों तक रहे, यहीं से उन्होंने दुनिया के राजाओं, बादशाहों और सभी धार्मिक नेताओं को अपने उद्देश्य के बारे में बताया। उन्होंने उनको ईश्वर का संदेश सुनने का, एक साथ बैठकर अपने मतभेद सुलझाने का और विश्व शान्ति के प्रसार के लिए कार्य करने का आदेश दिया। उन्होंने उनको बुरे नतीजे भुगतने की चेतावनी दी, जब उन्होंने उनकी बातों को नहीं सुना। बहाउल्लाह ने उनके और उनकी संस्थाओं के पतन की भविष्यवाणी की।
बहाउल्लाह के प्रभु-ज्ञान के अद्भुत प्रकाश का, जिसका जन्म तेहरान की काल-कोठरी में हुआ था और जिसकी घोषणा उन्होंने बगदाद से विदाई की पूर्व-संध्या में की थी, अपनी चरम पराकाष्ठा पर एड्रियानोपोल में पहुंच गया। बहाउल्लाह के अनुयायी बहाउल्लाह पर आयी विपत्ति और उन कष्टों के कारण जो उनको सहने पड़ रहे थे, एक बार फिर अत्यंत संतप्त थे किन्तु बहाउल्लाह ने उन्हें विश्वास दिलाया कि जेल के द्वार पुन: खुलेंगे और प्रभु के संदेश को इस पवित्र भूमि से दुनिया के हर हिस्से में ले जाया जायेगा जैसा कि हर पवित्र धार्मिक पुस्तक की भविष्यवाणियों में है और ऐसा ही हुआ। बहाउल्लाह, उनके परिवार और उनके कुछ अनुयायियों को जिन्होंने उनका साथ छोड़ना अस्वीकार कर दिया था, अक्का की जेल में भयानक कठिनाइयां भुगतनी पड़ी थीं। किन्तु कुछ ही समय में उस स्थान के लोगों का अमैत्रीपूर्ण व्यवहार, जेल-रक्षकों का शत्रुता का आचरण और यहाँ तक कि अधिकारीगण भी धीरे-धीरे उस महान कैदी के उपदेशों की शक्ति के कारण बदलने लगे। सरकार ने उनकी जेल की सजा कभी माफ नहीं की। बहाउल्लाह के अंतिम वर्ष उनके शत्रुओं की आशा के विपरीत बीते। एक बार फिर उनसे मिलने वालों का तांता बँध गया, हर वर्ग और समाज के आस-पास के देशों से लोग उनके उपदेश सुनने के लिए आने लगे। उनके सदा बढ़ते अनुयायियों ने जो अब ‘बहाई’ नाम से जाने जाते थे, उस जीवनदायक संदेश को पवित्र भूमि से दुनियाभर में फैलाने का व्रत ले लिया।
बहाउल्लाह का 75 वर्ष की आयु में 29 मई, 1892 को बहजी में देहान्त हुआ। ‘बहाउल्लाह’ ईश्वर के वह महान अवतार हंै जिनके प्रकट होने की भविष्यवाणी पिछले सभी अवतारों ने की है। सभी युगों के दैवी धर्म एक ही दिशा में ले जाते हैं और एक ही लक्ष्य की शिक्षा देते हैं। वे सागर में जाकर मिलने वाली अनेक नदियों के समान हैं। प्रत्येक नदी हजÞारों एकड़ भूमि की सिंचाई करती है परन्तु कोई अकेली नदी ऐसी महान और शक्तिशाली नहीं जो समुद्र का मुकाबला कर सके, क्योंकि समुद्र सभी नदियों का संगम है। बहाई धर्म भी इसी प्रकार का एक सागर है। बहाई समाज में आकर सभी धर्मों के अनुयायी मिलकर संगठित हो गए हैं। चाहे वे संसार के भिन्न भागों के लोग हैं, परन्तु अब वे एक महान बिरादरी और एक ही सामान्य धर्म में मिल गये हैं।

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