महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी दबंगई और आक्रामकता के लिए पहचाने जाने वाले नारायण राणे ने एक फिर से नए राजनीतिक मांद की तलास शुरू कर दी है। राणे के करीबी सूत्रों की माने तो, उनका नया ठिकाना भारतीय जनता पार्टी हो सकती है। इसके लिए उन्होंने चौतरफा खेमे बंदी भी कर दी थी , लेकिन आखिरी वक्त में शिवसेना के विरोध के चलते राणे का खूंटा भाजपा जमीन पर नहीं गड सका। पिछले लम्बे समय से भाजपा भी शिवसेना की दबाव राजनीति से परेशान हो गई है। शिवसेना - भाजपा के बीच हमेशा सामंजस्य बनाने का काम प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे करते रहे , अब यह दोनों नेता दुनिया में नहीं रहे। ऐसे में भाजपा के सामने यह भी एक बड़ी समस्या है कि, बार-बार मातोश्री( शिवसेना प्रमुख का निवास स्थान ) नत मस्तक होने के लिए कौन जायेगा। महाराष्ट्र में शिवसेना - भाजपा के बीच 25 साल का पुराना गठबंधन है , जो टूटने के हालत में पहुँच गया है। संभव है कि , इसी बदलाव की आहात ने नारायण राणे को भाजपा की ओर लगातार खींच रही है।
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नारायण राणे |
भाजपा के सामने एक सबसे बड़ी समस्या तब आती है, जब हिंदी भाषियों के किसी भी मामले में खुलकर बोल नहीं पाती। इसका कारण शिवसेना गठबंधन ही है। खासकर मुंबई और ठाणे में भाजपा के पास हिंदी भाषियों का मजबूत संगठन है। इन्हे बचाये रखने के लिए भी भाजपा को सेना से अलग होना पड़ सकता है। इस हालत में सिर्फ नारायण राणे ही मराठी कार्यकर्ताओं की क्षतिपूर्ति कर सकते है। राणे शुरू से ही काफी अक्रामक रहे हैं. जब वे शिवसेना में थे तक कांग्रेस पर जमकर हमले किया करते थे. उनके आक्रामक तेवर ने ही उन्हें एक बेबाक और दबंग छवि वाले नेता के रूप में पहचान दिलायी है। नारायण राणे राज्य मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर कांग्रेस विरोधी बिगुल तो बजा ही दिया है। उनके इस विरोध ने साफ़ कर दिया है कि, वह अब कुछ ही दिनों के लिए कांग्रेसी मेहमान है। उन्होंने अपने प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस हाईकमान पर भी सवाल उठा दिया था। उनका कहना था कि, उन्हें 6 महीने पहले ही मुख्यमंत्री बनाये जाने का वादा किया गया था। ऐसा नहीं है कि , पहली बार राणे ने मुख्यमंत्री बनाये जाने को लेकर विरोध किया है , इसके पहले दिसंबर 2007 में, भी मुख्यमंत्री पद को सुरक्षित करने के प्रयास में वे अपनी ही पार्टी के आधिकारिक मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख, को चुनौती देकर पार्टी में हंगामा खड़ा कर दिए थे। हालाँकि भाजपा का एक धड़ा राणे को पार्टी में शामिल करने के पक्ष में नहीं है। उसे पता है कि , राणे का जितना लाभ है उतना नुकशान भी है। उनके आक्रामक तेवर के सामने वर्तमान भाजपा में कोई ऐसा नहीं है, जो मुकाबला कर सके।