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बीमा क्षेत्र में एफडीआई बढ़ाना देश के लिये घातक

उमेश तिवारी, सीधी.

जिन मुद्दों पर भाजपा विपक्ष में होने पर संसद में छाती पीट-पीट कर विरोध करती थी उन्हीं मुद्दों पर अब वह संसद में बिल लाकर उद्योगपतियों के हितों का संवर्धन करने जा रही है। चुनाव के समय श्री मोदी के लिए विज्ञापन करने वाले देशी-विदेशी पूंजीपतियों को ईनाम के लिए जन विरोधी फैसले मोदी सरकार कर रही है। सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढाने का निर्णय, रेलवे मे एफडीआई, भूमि अधिग्रहण कानून मे सहमति 80 प्रतिशत के बजाय 50 प्रतिशत करने पर विचार, गेहूं मे बोनस समाप्त करने का निर्णय, मनरेगा को समेटने की जुगत, बुलेट ट्रेन चलाने का निर्णय, किसानों तथा गरीबो को मिलने वाली छूट (सब्सिडी) मे कटौती पर विचार को कैसे देश हित में कहा जा सकता है? 

 
एफडीआई के विरोध में प्रदर्शन करते बीमा और बैंककर्मी
एफडीआई के विरोध में प्रदर्शन करते बीमा और बैंककर्मी

एनडीए सरकार ने ही किया था बीमा क्षेत्र का निजीकरण
 
रेलवे के बाद रक्षा सेक्टर में भी है एफडीआई की तैयारी


प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने विदेशी पूंजी निवेश लगभग हर क्षेत्र में खोल दिया है। ऐसा ही एक बिल संसद में रखने की कैबिनेट ने मंजूरी दी है, जिसमें बीमा क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। तर्क यह दिया जा रहा है कि इससे 60 हजार करोड़ रूपये का निवेश होगा और मूलभूत जरूरतों के लिये पूंजी की उपलब्धता बढ़ेगी। लेकिन अगर सन 2000 से लेकर 2013 तक के बीमा क्षेत्र में 26 प्रतिशत विदेशी निवेश की सीमा के तहत लाई गई विदेशी पूंजी पर नजर डालें तो इसकी कलई खुल जाती है। इस दौरान महज 7250 करोड़ रूपये का निवेश किया गया, वह भी निजी कम्पनियों के कार्यालयों और उनके विकास पर यह राशि खर्च की गई। इसके अलावा एक-दो कम्पनियों को छोड़कर सभी घाटे में हैं और ग्राहकों का धन वापस करने की हालत में नहीं हैं।

वाजपेयी जी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने वर्ष 1999 में आईआरडीए (बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम) बिल पास कर बीमा क्षेत्र में निजीकरण की अनुमति दी थी। बहुराष्ट्रीय बीमा कम्पनियों की नजर सरकारी नियंत्रण वाली एलआईसी (भारतीय जीवन बीमा निगम) के 15 लाख हजार करोड़ की परिसम्पत्ति पर है, जिसे कमजोर कर वो इसे हड़पना चाहती है। इसीलिये 23 निजी कम्पनियों को मजबूत किया जा रहा है और एलआईसी से आऐ दिन शेयर बाजार की हालत सुधारने के लिये हजारों करोड़ रूपये प्रतिमाह उसमें निवेश कराया जा रहा है। जहां एक ओर एलआईसी में कर्मचारियों की भर्ती पर अघोषित प्रतिबन्ध है, जिससे कार्य बोझ बढ़ते जाने से एवं वेतन संशोधन दो वर्ष से लंबित होने से एलआईसी में हताशा का माहौल है। वहीं आईआरडीए ने एलआईसी के नये प्लानो पर रोक लगा रखी है, जिससे एलआईसी का व्यवसाय भी प्रभावित है। सरकारी बीमा कम्पनी को मजबूत बनानें और बीमा क्षेत्र में एफडीआई न बढ़ाना ही उचित है।

जहां एलआईसी प्रत्येक पंचवर्षीय योजनाओं मे हजारों करोड़ रूपये सड़क, बिजली, पानी जैसे विकास के कार्यों में धन लगाती हैं, वहीं निजी बीमा कम्पनियां विदेशी साझेदारों के साथ देश को लूटने की तैयारी में हैं। मोदी सरकार बीमा क्षेत्र मे एफडीआई लाकर निजी देशी, विदेशी कम्पनियों को देश हित के विरूद्ध उनका साथ दे रही है।




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