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इस बार लौटी "लोकरंग" उत्सव की गरिमा

भोपाल। पारम्परिक कलाओं के उत्सव 'लोकरंग' में रविन्द्र भवन के मुक्ताकाश मंच और परिसर में सजे शिल्प बाजार कला प्रेमियों को लम्बे समय तक याद रहेंगे।

लोकरंग में इस वर्ष उल्लेखनीय बात यह रही कि इस बहुरंगी उत्सव को वापस मिला रविन्द्र भवन परिसर और मुक्ताकाश मंच। कुछ साल तक भेल दशहरा मैदान में यह उत्सव होने से नये और पुराने भोपाल शहर के लोग अधिक दूरी के कारण इसका आनन्द लेने में असुविधा महसूस कर रहे थे। राज्य सरकार ने उत्सव के पुराने गरिमामय स्वरूप को लौटाने की पहल की। इस बार विभिन्न राज्यों और अन्य देशों से पधारे कला धर्मियों ने उत्सव की हर शाम को खास बना दिया।
कलाकारों को मिला सम्मान
ब्राजील, रूस और यूक्रेन के लोक कलाकारों के गीत और नृत्य देखकर राजधानी के कलाप्रेमी भाव-विभोर हो गये। कलाकारों से कलाप्रेमियों ने मुलाकात की और उनके साथ सेल्फी भी ली। प्रदेश के आंचलिक कलाकारों के हुनर से भी सभी प्रभावित हुए। मध्यप्रदेश के लोक-नर्तकों और लोक-गायकों की प्रस्तुति के समय भी कलाप्रेमी अपने सेलफोन से इनकी तस्वीरें खींचते हुए दिखाई दिये। संस्कृति विभाग ने सभी कलाकारों को समुचित सम्मान प्रदान किया। लोकरंग के मंच पर उन्हें आदरपूर्वक निमंत्रित करने और संस्कृति मंत्री और अन्य अतिथियों द्वारा सम्मानित किये जाने का कार्य भी गरिमामय तरीके से किया गया।
प्रदर्शनियों का आकर्षण
लोकरंग में अनुभूति प्रदर्शनी के अंतर्गत जनजातीय चित्रकारों की प्रतिभा दिखाई दी। प्रतिदिन हजारों लोगों ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया। परिसर में लघु उद्यान में गोंड चित्रकला के एक से बढ़कर एक चित्रों के नमूने प्रदर्शित किये गये। इन्हें देखने के लिये बड़ी संख्या में लोग पहुँचे। इसी तरह परिसर में जनसम्पर्क विभाग की प्रदर्शनी का अवलोकन भी हजारों लोगों ने किया। बच्चों के प्राचीन खेलों को मिट्टी शिल्प के माध्यम से प्रदर्शित करने वाली एक विशेष प्रदर्शनी सभी को लुभाती रही।
शिल्पकलाओं की झांकी
गणतंत्र दिवस 26 जनवरी से गांधी जी की पुण्य-तिथि 30 जनवरी के बीच मध्यप्रदेश की पारम्परिक चंदेरी और माहेश्वरी साड़ियों के अलावा धार जिले का बाग प्रिंट, बालाघाट का बांस शिल्प, छतरपुर का मिट्टी शिल्प, बैतूल का घड़वा शिल्प और छिन्दवाड़ा से पधारे गोंड आदिवासियों की काष्ठ शिल्प कलाकृतियों ने खरीददारों को आकर्षित किया। लोकरंग में शहरी लोगों ने सुदूर ग्रामीण अंचलों से आये गुदना करने वाले पारम्परिक जानकारों की भी सेवाएँ लीं।
स्वाद ने भी ललचाया
लोकरंग परिसर में बनाये गये स्वाद परिसर में खाने-पीने के शौकीन लोगों को बड़ी संख्या में देखा गया। असम, लद्दाख, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश के गोंड, भीली और बेगा लोगों के पारम्परिक व्यंजनों का स्वाद लेने के लिये हर आम- ओ-खास लोग नजर आए।

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