Type Here to Get Search Results !

पारम्परिक कलाओं के उत्सव "लोकरंग" की चौथी शाम

भोपाल। पारम्परिक कलाओं के उत्सव 'लोकरंग' में चौथे दिन 29 जनवरी को 'देशान्तर' उपक्रम में मयूरी ग्रुप में रूस की युवा कलाकारों की भारतीय शैली में हिंदी गीत  देश मेरा रंगीला.. पर  रविन्द्र भवन के मुक्ताकाश मंच पर नृत्य-गायन की प्रस्तुति अद्भूत थी। संध्या  कार्यक्रम की शुरूआत देशराग के अंतर्गत श्री शाहिर अवधूत बापूराव विभूते (महाराष्ट्र) एवं साथियों ने 'पोवाड़ा गायन' की  प्रस्तुति से हुई। पोवाड़ा गायन वीर योद्धाओं को युद्ध में उत्साहित करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है। 

लोकरंग में अगली प्रस्तुति में गणगौर निमाड़ी परम्परा का नृत्य-गायन हुआ। प्रदेश के निमाड़ अंचल में गणगौर का पर्व बहुत हर्षोल्लास और श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। चैत्र मास की नवरात्रि में पूरा निमाड़ अंचल गणगौर माता के गीतों से गूंज उठता है। गीत और नृत्य गणगौर पर्व की आत्मा है। गणगौर पर्व आते ही ढोल और थाली की थाप पर समूचा निमाड़ अंचल झूम उठता है। शिव और पार्वती के रूप में धनियर राजा और रनु बाई की पूजा अर्चना की जाती है। जवारों के रूप में माता की स्थापना की जाती है, माता के मूर्तिनुमा रथ सजाए जाते हैं। इन रथों को आंगन में रखकर महिलाएँ गीत गाते हुए झालरिया नृत्य करती हैं।  पुरुष और स्त्रियां खाली रथों को अपने सिर पर रखकर झेला नृत्य करते हैं।

गणगौर पर्व का ऐसा कोई भी कार्य नहीं, जो  गीतों के बिना संभव हो। लोकरंग प्रस्तुत नृत्य नाटिका में गीत और नृत्य के माध्यम से गणगौर पर्व के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने का प्रयास किया गया। बाड़ी पूजन, आरती, फूल पाती नृत्य, झालरिया नृत्य, विदाई और झेला नृत्य के माध्यम से गणगौर पर्व की संगीत नृत्य परंपरा की  झांकी संजय महाजन और   समूह  द्वारा प्रस्तुत  की गई।  सभी कलाकारों ने अपने कलात्मक अभिनय कौशल से  मंत्र मुग्ध कर दिया। संजय महाजन, बड़वाह का निर्देशन सराहनीय रहा।

'धरोहर' और 'लोकराग' के अंतर्गत जनजातीय एवं लोकनृत्यों के प्रदर्शन में घसिया जनजातीय का करमा नृत्य-उत्तरप्रदेश  के श्री राम आधार एवं  समूह ने किया। यह नृत्य घासिया जनजाति समुदाय  भादो में करमा देवी की पूजा करमा वृक्ष की लकड़ियों को घर में लाकर करता है। खुशियों के अवसर पर जनजाति के लोग नृत्य-गायन कर उत्साह मनाते हैं। कोरकू जनजातीय गदली एवं थापटी नृत्य मध्यप्रदेश  के श्री मंशाराम, हरदा के निर्देशन में प्रस्तुत किया गया।

तेलंगाना के कुम्मकोया नृत्य  की प्रस्तुति भी प्रभावशाली थी। इस नृत्य में मानसून की शुरुवात  से लेकर सावन  तक  फसल की अच्छी पैदावार के लिए उल्लास  और आशा के भाव से कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। पुरूष कलाकार सिर पर मोर पंख और सींग लगाकर यह नृत्य प्रस्तुत करते हैं।  ओडिसा के श्री राजेन्द्र महापात्र एवं समूह  ने शंख ध्वनि नृत्य  प्रस्तुत किया।

लोकरंग में कालबेलिया, मुरिया, ढिमसा के नृत्यों की प्रस्तुतियां भी की गईं।   उत्सव में बड़ी संख्या में आमजन स्वाद, शिल्प बाजार, प्रदर्शनी देखने भी पहुँचे।   

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.