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इंडियन इकॉनामिक एसोसिएशन का वार्षिक सम्मेलन

भोपाल। भोपाल में आयोजित इंडियन इकॉनामिक एसोसिएशन के 104वें वार्षिक सम्मेलन के पहले सत्र में "इकॉनामिक रीवाइटलाइजेशन : चैलेंजेस एण्ड पॉलिसी च्वाइसेज'' में "एग्रीकल्चर फॉर ग्रोथ एण्ड सस्टेनेबल डेवलपमेंट'' और"मैन्यूफेक्चरिंग : स्टार्ट अप्स एण्ड एमएसएमई'' पर आर्थिक विशेषज्ञों ने व्याख्यान दिये। सत्र की अध्यक्षता कर रहे नीति आयोग के सदस्य श्री रमेश चंद ने समावेशी विकास पर बल दिया। उन्होंने कहा कि औद्योगिक एवं कृषि विकास साथ-साथ होना चाहिये। साउथ एशिया इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च के पूर्व निदेशक प्रो. पी.के. जोशी ने कहा कि कृषि खाद्य प्रणाली का भविष्य नवाचार, नीति और बाजार पर आधारित रहेगा।

श्री जोशी ने उत्पादन प्रणालियों के संदर्भ में कृषि खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन, खपत प्रणाली तथा बाजार एवं व्यापार से महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि टिकाऊ कृषि प्रणाली के लिये पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की ओर विविधीकरण, भोजन की बर्बादी कम करने, खाद्य अनुसंधान में निवेश बढ़ाने तथा निजी क्षेत्र, कृषि और खाद्य उद्योग में प्रोत्साहित कर वित्त आमंत्रित करने पर जोर दिया।

यूएनईएसकेएपी की डॉ. श्वेता सक्सेना ने समावेशी हरित प्रतिरोधी अर्थ-व्यवस्थाओं का निर्माण कैसे करें, पर अपने प्रस्तुतिकरण में कहा कि कोविड महामारी की वजह से सबसे कम विकसित देश और उभरते बाजार प्रभावित हुए हैं। डॉ. सक्सेना ने कहा कि ऐसी आपदाओं में हमें अपनी तैयारी रखनी होगी। इसके लिये राष्ट्रीय योजना और नीति विकास में जोखिम प्रबंधन को एकीकृत कर, प्रतिरोधक क्षमता मजबूत कर, प्रभावी सार्वजनिक ऋण प्रबंधन तथा आपदा जोखिम प्रबंधन व्यवस्थाओं से अर्थ-व्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है।

सीपीआरआईडी चंडीगढ़ के प्रो. सतीश वर्मा ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि रजिस्टर में सहकारी समाज शामिल है। उन्होंने कहा कि जहाँ भी कमीशन एजेंटों का वर्चस्व होता है, एफपीओ की चुनौती बढ़ जाती है। प्रो. वर्मा ने किसानों की समस्या को समझाते हुए कहा कि किसान घरेलू जरूरतों के लिये कर्ज लेते हैं।

मैन्युफेक्चरिंग : स्टार्ट अप्स एण्ड एमएसएमई पर अपने व्याख्यान में आईएसआईडी, नई दिल्ली के निदेशक प्रो. नागेश कुमार ने कहा कि मेक इन इंडिया समय से पहले औद्योगीकरण की प्रवृत्ति को बदलने के लिये एक सामयिक कदम है। औद्योगिक परिवर्तन भारत के आर्थिक विकास और समृद्धि का अगला स्वरूप होगा।

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