सपाक्स ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने नहीं, राज्य सरकार ने रोकी हैं पदोन्नतियां
भोपाल। सु्रपीम कोर्ट के 12 जून 2016 के निर्णय के अनुसार जिन आरक्षित वर्ग के सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों की अवैध पदोन्नति को निरस्त करके डिमोशन होना था, उनको ही रिव्यू डीपीसी के नाम पर प्रमोशन दिया जा रहा है। राज्य सरकार बार-बार सुप्रीम कोर्ट से पदोन्नतियों पर रोक लगाए जाने का झूठ बोल रही है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ पदोन्नति नियम-2002 के आधार पर पदोन्नति में आरक्षण का अवैध फायदा उठाकर प्रमोशन लेने वालों को ही आगे प्रमोशन देने से रोका है। सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग को पदोन्नति देने से नहीं रोका है।
यह कहना है सपाक्स (सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कमर्चारी संस्था) के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. केदार सिंह तोमर, वर्तमान अध्यक्ष अजय जैन और सपाक्स समाज के भानु तोमर, प्रसंग परिहार का, जोकि सपाक्स की बैठक के बाद मीडिया से चर्चारत थे। इनका कहना है कि 30 अप्रैल 2016 को पदोन्नति में आरक्षण नियम पर हाई कोर्ट जबलपुर ने पदोन्नति में आरक्षण को अवैधानिक घोषित करते हुए आरक्षित वर्ग के कमर्चारियों अधिकारियों को पदावनत करने के आदेश दिए थे। बावजूद उच्च न्यायालय के निर्णय का पालन करने नहीं किया गया और सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करके स्थगन मांगा गया, लेकिन 12 जून 2016 को सरकार की स्थगन की मांग ठुकराते हुए यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था। तभी से इस अंतरिम आदेश की आड़ लेकर राज्य सरकार ने सामान्य, पिछड़ा वर्गओर अल्पसंख्यकों के प्रमोशन रोक रख हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से सामान्य पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग की पदोन्नति पर कोई स्थगन नहीं है।
डिमोशन करने के बजाय पिछले दरवाजे से दिया जा रहा है प्रमोशन
हाईकोर्ट के फैसले में साफ है कि असंवैधानिक नियमों का लाभ अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के कर्मचारियों अधिकारियों ने प्राप्त किया है एवं उनकी पदोन्नतियों पर ही प्रश्नचिन्ह है। इसीलिए सिर्फ आरक्षित वर्ग की अवैध पदोन्नतियां मात्र ही रोकी गर्इं हैं। इसके उलट राज्य सरकार सपाक्स वर्ग के विरोध साजिश करके लगातार पिछले दरवाजे से 2016 के पूर्व की डीपीसी के रिव्यू के नाम से उसी अवैध पदोन्न्ति पालने वाले वर्ग को पदोन्नतियां दी जा रहीं हैं, जिन्हें उच्च न्यायालय के निर्णय अनुसार पदावनत किया जाना है।
पदोन्नति नियम बनाने की आड़ में लटकाने का खेल
वतर्मान स्थिति को सुलझाने के लिए सरकार द्वारा लगातार नए पदोन्नति नियम बनाने की कवायद की गई। सरकार संगठनों से चर्चा तो करती है, लेकिन न्यायपूर्ण सुझावों पर अभी तक कोई सार्थक कार्यवाही नहीं की जा सकी है। सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में शीघ्र सुनवाई की पहल तक नहीं की जा रही है और न ही समस्या समाधान के लिए कोई कोशिश की जा रही है। बल्कि मामले को नियम बनाने की आड़ में सालों से लटकाए रखा गया है। हद तो यह है कि हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के फैसलों का पालन करने के बजाय नए नियम बनाने की साजिश करके सपाक्स वर्ग को नुकसान पहुचांनेकी कोशिश हो रही है।
गांव-कस्बों में चलाया जा रहा है मतदान-महादान अभियान
सामान्य, पिछड़ा वर्ग और अल्पसख्ंयक कर्मचारियों अधिकारियों के परिवारों ने गांवों से लेकर कस्बों तक में मतदान महादान अभियान चला रखा है, जिसके परिणाम 2023 के विधानसभा चुनाव में सामने आएंगे। गांव-गांव में बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नतियां नहीं रोकी, बल्कि सरकार लगातार झूठ बोलकर पदोन्नतियां रोके हैं। इसी कारण सपाक्स वर्ग के करीब 60 हजार कर्मचारी अधिकारी वर्ष 2016 से बिना पदोन्नति रिटायर हो चुके हैं, जिनके परिवारों सहित अभियान को गति दी जा रही है।

