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साबिक अमीरे जमाअत की पुण्यतिथि पर किया गया याद

बेगमगंज। शहर के प्रसिद्ध वकील रहे समाज के अमीरे जमाअत स्वर्गीय हाजी मकबूल हसन रह. को उनकी 32 वी पुण्यतिथि पर शिद्दत के साथ याद किया गया।

स्वर्गीय हाजी मकबूल हसन वकील फाइल फोटो

उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए पत्रकार शब्बीर अहमद ने बताते हुए इस  शेर से शुरुआत की कि हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर कोई पैदा। जी हां हम उस शख्सियत की बात कर रहे हैं जिन का सिलसिला ए नसब हिंदुस्तान के मशहूर बुजुर्ग झंझानवी रहमतुल्ला अलैहे से जाकर मिलता है बेगमगंज के साबिक अमीरे जमाअत अलहाज हज़रत पीर सैयद मकबूल हसन वकील साहब रह. की जो अपने नाम की खासियत के साथ मशहूर हुए कौम व इलाके की ऐसी रहनुमाई की कि  आज भी लोग उन्हें याद करते हैं । लोग अदब से आपका नाम नहीं लेते थे  मियां जी या वकील साहब कह कर पुकारते थे सभी मज़हब के लोग आपका अदब एहतराम करते थे आपकी एक आवाज़ पर  लोग अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो जाते थे। हिंदुस्तान से जब पहली जमात विदेश गई उसमें आपको जाने का मौका मिला। मसाजिद कमेटी भोपाल के चेयरमैन भी रहे। आमिल भी आप ऐसे थे कि अच्छे अच्छे जिन्नात आपसे पनाह मांगते  थे, खुदा ने आपको बेशुमार सलाहियतों  से नवाज़ा था बुजुर्ग बताते हैं कि आपके लिए खुदा ने अबदाल का मुकाम अता किया था। चार बार आपको हज पर जाने की सआदत  भी नसीब हुई।

किसी शायर ने क्या खूब कहा है किसी के क़दमों से रस्ते लिपट के रोया किए, किसी की मौत पे ख़ुद मौत हाथ मलती रही। 21 दिसंबर 1990 आज से 32 साल पहले आप अपने मालिके हक़ीकी से जा मिले पूरा इलाका ग़म में डूब गया । आप के जनाजे में शामिल होने के लिए मर्दों, बुजुर्गों और  बच्चों से घर खाली हो गए थे मां बहने अपने घरों पर पर्दे की आड़ से जनाजे को देखकर आंसू बहाते हुए अपने अमीरे जमाअत की मग़फिरत की दुआ करती रही , ऐसा मंज़र शहर के लोगों ने कभी नहीं देखा था। उस दिन कई घरों में चूल्हे नहीं जले थे। आपके जनाजे के पीछे एक मस्त एक बकरी और एक कुत्ता कब्रस्तान तक पीछे पीछे गए थे। 

शायर कहता है की " एक सूरज था कि वलियों के घराने से उठा, आँख हैरान थी क्या शख़्स ज़माने से उठा'' आप के इंतेकाल के बाद अमीरे जमाअत की जिम्मेदारी हज़रत अब्दुल हमीद साबिर साहब रह. को दी गई और 1995 में आप के इंतकाल के बाद से अमारत का सिलसिला बंद हो गया। परवरदिगार अलहाज हज़रत पीर सैयद मकबूल हसन वकील साहब रह. की बाल बाल मग़फिरत फरमांकर जन्नतुल फिरदौस में आला मकाम अता फरमाए और आपका नेक बदल अता करें आमीन, शाम दर शाम जलेंगे तेरी यादों के चराग़, नस्ल दर नस्ल तेरा दर्द नुमाया होगा। आप की 32 वी पुण्यतिथि पर विभिन्न मदारिस में खिराजे अकीदत पेश की गई।


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