बेगमगंज। जिस तरह से 1962 के युद्ध में अहीर सैनिकों ने रेजंग ला में अपना शौर्य दिखाया उसे कोई नहीं भूल सकता है। इस कंपनी के अधिकतर जवान 13वीं बटालियन में अहीर थे, जिन्होंने चीनी सैनिकों का डटकर सामना किया। अहीर समुदाय के सदस्य लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं कि सेना में एक अलग अहीर रेजिमेंट होनी चाहिए।
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यादव समाज की बैठक को संबोधित करते हुए |
उक्त उद्गार ग्राम भैंसा में आयोजित यादव समाज की बैठक में यादव शक्ति संगठन के जिला अध्यक्ष भैया राजा ने व्यक्त किए उन्होंने बताया कि सन 1962 में भारत चीन युद्ध में 13 कुमांयू की अहीर रेजिमेंट ने रेजांग लॉ युद्ध में लद्धाख में चीनी हमले का डटकर सामना किया। 120 अहीर जवानों ने आखिरी दम तक युद्ध किया और जबतक एक भी जवान जिंदा रहा उसने हार नहीं मानी। यह युद्ध 18 नवंबर 1962 को 17 हजार फीट की ऊंचाई पर मेजर शैतान सिंह की अगुवाई में लड़ा गया था। जवानों ने चीन को खूब छकाया। 117 में से 114 जवान इस ट्रूप में अहीर थे, जिसमे से सिर्फ 3 जवान ही जिंदा बचे थे, उन्हें भी गंभीर चोट लगी थी। यह अहीर ट्रूप हरियाणा की रेवाड़ी- महेंद्रगढ़ से जुड़ी थी। सर्दियां खत्म होने के बाद शहीद जवानों के शव को वापस लाया गया, कई जवानों के हाथ में हथियार आखिरी समय में थे। इन जवानों के कारतूस खत्म हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपने हथियार नहीं छोड़े थे। मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था, 8 जवानों को वीर चक्र और कई अन्य को सेना मेडल से सम्मानित किया गया था। इसलिए अहीर रेजिमेंट की मांग जोर-शोर से विगत कई वर्षों से की जा रही है। 26 फरवरी को भोपाल में आयोजित कार्यक्रम को अंतिम रूप देने के लिए बैठक आयोजित की गई है। ताकि अहीर रेजिमेंट क्यों जरूरी है इसकी अहमियत को समझ कर अधिक संख्या में यादव बंधु भोपाल पहुंचे सकें।
आपको बता दें की बैठक मे यादव समाज के वरिष्ठ नागरिकों ने अपने विचार रखे वही युवाओ मे जोश देखने को मिला सभी ने एकजुट होकर 26 फरवरी को अहीर रेजीमेंट की मांग को लेकर जन जागृति यात्रा में बड़ी संख्या में शामिल होने का संकल्प लिया।