बेगमगंज। लोक संस्कृति ढाल का कार्यक्रम गढ़ोईपुर मोहल्ले में रात के समय आयोजित किया गया जहां बांस की ढाल, जिसके एक सिरे पर मोर पंख की छतरी त्रिशूल, नारियल, और लाल रंग की पताकाएं व नीबू आदि बंधी थी। ढालों को कमर में कसकर बांधे गठीला युवक ढपले ल ताशे की थाप पर नाच रहा था, और भारी भीड़ के साथ
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| ढाल नचाते हुए |
कुछ लोग अपनी मंत्र विद्या का उपयोग करते हुए ढाल को चला रहे थे, तो कुछ लोग रोक रहे थे कुछ बिठाने का प्रयास करते देखे गए ऐसा करने वाले उन्हें विभिन्न देवी देवताओं की सौगंध देकर या कुछ मंत्रों का उच्चारण करके अपनी तंत्र शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। ऐसे ही कुछ लोगों द्वारा ढाल को बांध दिया गया जो आगे पीछे नहीं हो पा रही थी । गाजे बाजे के साथ चल रहे इस कार्यक्रम पर दर्शक झूम उठे, उनके पैर भी थिरकने लगे।
यह प्राचीन परंपरा है जहां ढाल को अपनी कमर से बांधने वाला व्यक्ति किसी सिद्ध चबूतरे पर पूजा उपरांत ऐसा करता है शहर के विभिन्न हिस्सों में इस तरह की प्रदर्शन दीपावली से लेकर ग्यारस तक और उसके बाद तक आयोजित होते हैं।
कई जगह ग्रामीण क्षेत्रों में मढ़ई मेला का आयोजन भी किया जाता है लोक संस्कृति का यह कार्यक्रम देर रात तक चलता रहा।

