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8 अप्रैल, 1929 और 13 दिसंबर, 2023,दोनों घटनाओं में समानता है

नई दिल्ली। यह दिलचस्प है कि भाजपा भगत सिंह को आतंकवादी नहीं मानती, बल्कि देशभक्त मानती है। आरएसएस भी अपनी प्रात: कालीन प्रार्थना में श्रद्धा के साथ भगत सिंह का स्मरण करता है। यह भी उल्लेखनीय है कि दोनों घटनाओं के बीच 94 वर्षों का लंबा अंतराल होने के बावजूद, और विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में भी, दोनों घटनाओं में समानता है। 

इतिहास में दर्ज 8 अप्रैल, 1929 को भारत की असेंबली में भगत सिंह और उनके साथियों ने दर्शक दीर्घा से बम फेंकने के बाद पर्चे बांटे थे, जिसमें लिखा था, “बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊंची आवाज़ (अर्थात धमाके) की जरूरत होती है।” बम फेंकने और पर्चे बांटने के बाद उन्होंने भागने का प्रयास नहीं किया, बल्कि अपने आपको गिरफ्तार करवाया। वे अपना अंजाम जानते थे।

इस घटना के 93 साल बाद 13 दिसंबर, 2023 को नए संसद भवन मेंदो नौजवानों ने पुन: उस घटना को दुहराया, और भारत के लोगों को भगत सिंह और उनके साथियों की याद दिलाई। इन नौजवानों ने लोकसभा में दर्शक दीर्घा से नीचे कूदकर, जहां शून्यकाल की कार्यवाही चल रही थी, कोई धमाका तो नहीं किया, और न ही पर्चे बांटे। लेकिन उन्होंने कोई पदार्थ जलाकर पीले रंग का धुआं जरूर किया, पर किसी भी संसद-सदस्य को किसी भी तरह का शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचाया; बस “तानाशाही नहीं चलेगी” का नारा लगाया। भगत सिंह की तरह इन्होंने भी भागने का प्रयास नहीं किया। इसलिए, वे आसानी से सुरक्षाकर्मियों द्वारा पकड़ लिए गए। पुलिस की पूछताछ में उनकी पहचान लखनऊ के 25 वर्षीय सागर शर्मा और मैसूर के 35 वर्षीय मनोरंजन डी. के रूप में हुई है। पुलिस द्वारा दो नौजवान संसद भवन के बाहर भी पकडे गए, जिन्होंने उसी तरह का पीला धुआं बाहर भी पैदा किया था, जैसा संसद के भीतर किया गया था। ये थे हिसार (हरियाणा) की 42 वर्षीय नीलम आजाद और लातूर (महाराष्ट्र) के 25 वर्षीय अमोल शिंदे। पुलिस के अनुसार ये चारों युवक ललित झा नाम के युवक के संपर्क में थे।

सर्वविदित है कि 1929 में भारत अंग्रेजों का उपनिवेश था। अत: औपनिवेशिक सरकार की तानाशाही के प्रति अपने असंतोष को व्यक्त करने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने असेंबली में बम-धमाका किया था। अंग्रेज सरकार ने उन्हें आतंकवादी करार दिया, और उन्हें फांसी की सज़ा दी गई। लेकिन 2023 का भारत एक आज़ाद भारत है, जिसकी सत्ता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हाथों में है। भाजपा के शासन को अगले महीने दस साल पूरे हो जाएंगे। इन दस सालों में भाजपा सरकार ने जिस तरह धर्म के नाम पर नफरत का वातावरण पैदा किया, और बेलगाम निजीकरण के द्वारा बेरोजगारी पैदा की, उसके प्रति इन चारों युवकों ने संसद में धुआं करके और नारे लगाकर भाजपा शासन की तानाशाही के खिलाफ अपने रोष को व्यक्त किया है। भगत सिंह भी आतंकवादी नहीं थे, और ये युवक भी आतंकवादी नहीं हैं। किन्तु जैसे अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह और उनके साथियों को आतंकवादी माना, उसी तरह भाजपा सरकार ने भी इन चारों युवकों को आतंकवादी करार दिया, और आतंक-रोधी कानून के तहत उन पर कार्यवाही की है।

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