विरोध के बाद मप्र में 131 प्रिंट के साथ रिलीज फिल्म का कलेक्शन 60 प्रतिशत बढ़ा
विजय सिंह, भोपाल
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फिल्म जिस्म-2 को हिट कराने के लिए नेगेटिव पब्लिसिटी का नुस्खा अपनाते हुए प्रायोजित विरोध करवाया गया। जबर्दस्त प्रचार के बाद भी फिल्म को शुरुआती रिस्पांस नहीं मिलने पर प्रदर्शित होने के तीसरे दिन से टॉकीजों के सामने नारेबाजी करके पोस्टर फाड़ने के साथ ही जलाए गए। खासतौर पर उल्लेखनीय होगा कि मध्यप्रदेश में 131 प्रिंट के साथ रिलीज होने वाली फिल्म का सिर्फ तीन शहरों में सिर्फ तीन टॉकीजों के सामने ही विरोध किया गया।
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केंद्रीय नेतृत्व अनजान
जिस्म-2 का विरोध बजरंग दल कर रहा था, लेकिन सच्चाई यही है कि इस विरोध के बारे में बजरंग दल के केंद्रीय नेतृत्व को भनक तक नहीं थी। सूत्रों पर यकीन किया जाए तो मध्यप्रदेश में भोपाल के अलावा इंदौर और गुना में विरोध के बाद बडेÞ नेताओं से जब पूछताछ शुरु हुई तो अचानक ही विरोध प्रदर्शन शांत हो गए। बडेÞ नेता खुलकर कुछ बोलने के बजाय अब पता करवाने और दिखवाने जैसे जुमलों की आड़ में बचने का प्रयास कर रहे हैं। दूसरी ओर, कहा जा रहा है कि फिल्म को हिट करवाने के लिए बजरंग दल के छुटभैए नेताओं को मैनेज किया गया था। बहरहाल बजरंग दल पर संस्कृति रक्षा की आड़ में मनमानी करने और लेनदेन करने के लगते आ रहे आरोप एकबारगी फिर से गर्मा गए हैं।
70 फीसदी कलेक्शन
फिल्म में सैक्स की भरमार और जबर्दस्त प्रचार के बाद भी शुरुआती दो दिन में फिल्म ने औसत से भी कम बिजनेस किया, लेकिन तीसरे दिन विरोध शुरु होते ही कलेक्शन बढ गया। फिल्मी गणितज्ञों के मुताबिक दूसरे और तीसरे हफ्ते में फिल्म ने 55 फीसदी कलेक्शन किया। इसकी लागत 7-8 करोड़ बताई जा रही है। ऐसे में फिल्म डिस्ट्रीब्यूटरों के हिसाब से यह कमाई औसत से ज्यादा है।
विरोध का हिट फार्मूला
विरोध-प्रदर्शनों से फिल्मों को फायदा होता है। इस नुस्खे का इस्तेमाल भट्ट कैंप हमेशा से ही करता आया है। हिट हॉलीवुड फिल्मों की बेहूदा नकल बनाकर सैक्स की चाशनी में लपेट कर परोसा जाता है। इसके बाद संस्कृति बचाओ मंच, बजरंग सेना, या सस्कृति रक्षक संघ जैसे संगठनों को आगे करके विरोध करवाया जाता है। इसके बाद कुछ चैनलों को पैकेज देकर इस फर्जी विरोध को हाईलाइट करवाया जाता है। इसी विरोध की खबर दिखाने की आड़ में चैनल फिल्म के गर्मागर्म सीन बार बार दिखाते हैं। इस तरह फिल्म की नेगेटिव पब्लिसिटी से फायदा मिलता है। इस सच्चाई को हर फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स और फाइनेंसर अच्छे से जानता है, इसीलिए विरोध करने वालों के खिलाफ कभी भी एफआईआर दर्ज नहीं कराई जाती। इसके नतीजे में विरोध करने वाले बिकाऊ संस्कृति रक्षकों के खिलाफ पुलिस सख्त कार्रवाई नहीं कर पाती। नाम नहीं छापने की शर्त पर इंदौर स्थित एक अनुभवी डिस्ट्रीब्यूटर्स ने बताया कि ‘जोधा अकबर’ औसत से भी कम थी, लेकिन राजस्थान, गुजरात, बिहार और उत्तरप्रदेश में राजपूतों के विरोध से बकवास फिल्म भी बूम कर गई और 35 करोड़ की डूबती फिल्म ने 60 करोड़ से ज्यादा कमाया। इसी तरह हॉलीवुड की नाजी जासूस की जिदंगी पर बनी फिल्म ‘आई आॅफ द नीडिल’ की बेहूदा नकल ‘फना’ आमिरखान और काजोल स्टारर फिल्म भी शुरुआत में नाकाम थी, लेकिन गुजरात में विरोध होते ही दिल्ली और एनसीआर सहित उत्तर भारत में 27 करोड़ की फिल्म 55 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई।
खुल चुकी है पोल
प्रायोजित विरोध करवाने की पोल पहले भी खुल चुकी है। गौरतलब होगा कि राजा बुंदेला निर्देशित फिल्म प्रथा का प्रदर्शन 17 नवबंर,2002 को भोपाल की ज्योति टॉकीज में किया गया था। उस समय बजरंग सेना ने हमला करके तोड़ फोड़ की थी। हालांकि, पुलिस जांच में साफ हुआ कि बुंदेला के हम प्याला और हम निवाला युवक कांग्रेस नेता और कमलनाथ समर्थक राजीव तिवारी ने बुंदेला के कहने पर ही नकली हमला करवाया था। इस मामले में बुंदेला और युंका नेता राजीव तिवारी की गिरफ्तारी भी हुई थी।
बाहर से आता है पैसा
ऐसा भी नहीं है कि फिल्मों को हिट करवाने के लिए ही प्रायोजित विरोध करवाया जाता हो, बल्कि हिट हो रही फिल्म को पिटवाने के लिए भी विरोध स्पांसर्ड करवाया जाता है। भोपाल में मणि रत्नम की सुपर डुपर हिट फिल्म ‘बांबे’ का विरोध किया गया था। इसके बाद अनिल शर्मा की ब्लॉक बस्टर हिट फिल्म ‘गदर-एक प्रेमकथा’ का युवक कांग्रेस नेता आरिफ मसूद की अगुवाई में हिंसक विरोध हुआ था। इसमें डेढ़ दर्जन से ज्यादा पुलिस वाले और निर्दोश अवाम शिकार बनी थी और लाखों रुपए का नुकसान हुआ था। इसकी खुफिया जांच में यह उजागर हुआ था कि, इस विरोध प्रदर्शन के लिए मुंबई के एक फिल्म हाऊस और खाड़ी देशों से एकमुश्त पैसा आया था। इसके बाद से ही आरिफ मसूद कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार होने लगे और प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता तक बने।
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कहते हैं जिम्मेदार
प्रांत स्तर पर फिल्म के विरोध का निर्णय नहीं लिया गया है, हो सकता है कि जिलास्तर पर फिल्म देखने के बाद अश्लील और संस्कृति विरोधी होने के कारण प्रदर्शन किए गए हों।
-देवेंद्र सिंह रावत, प्रवक्ता, मध्यप्रदेश बजरंग दल
भट्ट कैंप की फिल्मों की तो वैसे ही सैक्स परोसने और विवाद खड़ा करने के लिए बनती है। सेंसर बोर्ड से पास होने के बाद विरोध बेमानी है, इससे मुफ्त की पब्लिसिटी मिलेगी।
-राजीव चतुर्वेदी, पूर्व प्रांतीय महासचिव, मप्र शिवसेना
विरोध से फायदा ही फायदा है, इससे फिल्म के बैन होने या खास सीन कटने से पहले ही देखने का माहौल बनता है। विरोध प्रदर्शन आर्गनाईज करवाकर मीडिया में उछाले जाते है।
-अजीज उद्दीन, सचिव, भोपाल सिनेमा एसोसिएशन
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जयप्रकाश चौकसे, फिल्म समीक्षक, मुंबई से ात
-जिस्म-2 का विरोध होने से नफा या नुकसान?
-नेगेटिव पब्लिसिटी का जमाना है तो फायदा तो मिलेगा ही, सेंसर बोर्ड से क्लियर होने के बाद विरोध गलत है। विरोध होने से बकवास फिल्में भी चर्चाओं में आ जाती है और मुनाफा कमाती है।
-हिट कराने के लिए विरोध प्रायोजित करवाया गया है?
-इस तरह के हुड़दंग से फर्जी संस्कृति रक्षकों और फिल्ममेकर का फायदा होता है। प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर्स से वसूली भी होती है। इसी से देशभर में प्रदर्शित फिल्म का चंद जगह ही विरोध होता है।
