अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूतों ने बनाया सर्व क्षत्रिय महासंघ
सूबे की राजनीतिक और प्रशासनिक तस्वीर बदलने की तैयारी
पहली बार राजनीतिक विवादों को निपटाने आगे आए अफसर
सियासी हकदारी के लिए ताल ठोंकने के साथ ही मांगा आरक्षण
विजय एस. गौर, भोपाल
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अगड़ी और पिछड़ी मार्शल कौमों ने साझा मंच बनाते हुए सूबे की सियासत में हिस्सेदारी मांगी है। करीब दो दर्जन जातीय संगठनों ने अजगर की तर्ज परसर्व क्षत्रिय महासंघ यानि सक्षम बनाया है। इसके जरिए आगत विधानसभा और लोकसभा चुनाव से पहले-पहले प्रशासनिक और राजनीतिक जमावट करके प्रभुत्व पाने की तैयारी है। इसके लिए पहला शक्ति प्रदर्शन 28 अक्टूबर को भोपाल में होने वाले दशहरा मिलन समारोह में होगा, जिसके मंच पर राज्यपाल रामनरेश यादव और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कई मंत्री, विधायक और सांसद होंगे।
सूबे की सियासी तस्वीर बदलने के लिए अजगर ने करवट बदलनी शुरु कर दी है।
अजगर यानि अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूतों के जातीय संगठनों के साथ साथ अब बाकी क्षत्रिय कौमों को भी नए बने सर्व क्षत्रिय महासंघ यानि सक्षम में जोड़ा गया है। इसमें सबसे खास बात यही है कि, सक्षम की नींव रखने का काम राजनीतिकों के बजाय प्रशासनिक अधिकारियों ने किया है, जिन्होंने पंजीयन कराने तक चुप्पी साधे रखने के अगस्त के आखिरी सप्ताह में दो दिन चली मैराथन बैठक में अपने मंसूबे काफी हद तक साफ कर दिए। इस बैठक में बीएल सिंह, पीएस रघुवंशी, लखनलाल कौरव, धीरज सिंह ठाकुर, रामगोपालसिंह राजपूत, राजेंद्र सिंह गुर्जर, हरिनारायण जाट, भोजराज सिंह परमार, योगेंद्र सिंह कुशवाह, ओंकार सिंह, लखन सिंह मौर्य, दिनेश सिंह चौहान, श्रवण गिन्नारे, सरदार अमृतपाल सिंह, करण सिंह राजपूत, भुजराम जाट, सतीश राजपूत जैसे दिग्गज जातीय नेता थे। पहली ही बैठक में जातीय उपेक्षा से उबरने और बराबरी का हक पाने तक संघर्ष करने का ऐलान किया गया। इसमें सक्षम की पीड़ा उभर कर सामने आई कि, वोट बैंक की राजनीति के चलते आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन तक की तैयारी में कमोबेश सारे सियासी दल हैं, लेकिन वास्तविकता में गरीबी की दलदल में फंसे अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बारे में विचार तक नहीं किया जाता। यदा कदा अगड़ी जातियों के गरीबों को भी आरक्षण दिए जाने की खोखली घोषणाएं जरुर की जाती हैं, लेकिन होता कुछ भी नहीं है। इसके साथ ही प्रशासनिक और शैक्षणिक क्षेत्र में भी वाजिब स्थान नहीं मिलता। सरकारी विभागों में पदस्थापनाओं से लेकर योजनाओं तक में हाशिए पर कर दिया गया है। सक्षम में शामिल राजपूतों और रघुवंशियों के अलावा बाकी संगठन पिछडेÞ वर्ग से आते हैं और इनको सरकारी नौकरियों में पदोन्नति का लाभ नहीं मिल पा रहा है, जबकि दिग्विजय सरकार इसके प्रावधान कर चुकी थी। पिछड़ी जातियों के संगठनों का मानना है कि, हाईकोर्ट में जानबूझकर एक याचिका दायर करवाने के बाद स्टे लग गया और सरकार जवाबदेही को टालती आ रही है। इससे पदोन्नति में पिछडेÞ वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण
का लाभ नहीं मिल पा रहा है। अभी मध्यप्रदेश में सिर्फ अनुसूचित जातियों को ही पदोन्नति में आरक्षण का लाभ मिल रहा है। इससे पिछड़े वर्ग का आक्रोश बढ़ना लाजिमी है।
सबके लिए खतरे की घंटी
यहां ध्यान देने की बात है कि, मध्य प्रदेश में सत्ता की हैट्रिक लगाने की उम्मीद संजोए बैठी भारतीय जनता पार्टी की अघोषित जातीय राजनीति पिछडेÞ वर्गों के आसपास ही घूम रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में सर्वाधिक मंत्री पिछडेÞ वर्ग से ही हैं। ऐसे में पिछड़े वर्गों के साथ ही अगडेÞ वर्गों के अफसरों की जुगलबंदी सरकार के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है। कदाचित, इसीलिए सक्षम के 18 सितबंर,2012 को पहली बार मीडिया के सामने आने पर भाजपा के दिग्गज नेता और वर्तमान में मप्र ऊर्जा विकास निगम के अध्यक्ष विजेंद्र सिंह सिसौदिया भी मौजूद थे। इसके जवाब में कांग्रेस से चुनाव लड़ चुके और पेशे से ठेकेदार दीपक चौहान पूरे समय मौजूद रहे। दोनों ही दलों ने नए बने सक्षम की ताकत और गुस्से को भांपते हुए अपने पक्ष में भुनाने की अभी से पेशबंदी शुरु कर दी है।
कांग्रेस इस मामले में भाजपा के लिए परेशानी खड़ी करने की तैयारी में है।
कांग्रेस की कोशिश है कि, दिग्विजय शासनकाल में पिछड़ों को दिए गए 27 प्रतिशत आरक्षण को लागू करने की मांग को जोर शोर से उठाया जाए। इसके नतीजे में भाजपा सरकार पर दबाव बढेÞगा, ऐसे में अगर आरक्षण लागू हो गया तो क्रेडिट कांग्रेस को ही मिलेगा। अगर हाईकोर्ट में लंबित याचिका के कारण ऐसा मुमकिन नहीं हुआ तो भी भाजपा सरकार पर जानबूझकर लापरवाही बरतने की तोहमत तो थोपी ही जा सकेगी।
सारे क्षत्रिय एक मंच पर
सर्व क्षत्रिय महासंघ में अगड़ी और पिछड़ी जातियों को जोड़ा गया है। इसमें आजादी के पहले और बाद में सत्ता संतुलन बनाने से लेकर परिवर्तन तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले क्षत्रिय जाति समूह शामिल हैं। कोशिश है कि प्रदेश में सक्रिय करीब डेढ़ सौ जाति समूहों और संगठनों को एक झंडे के नीचे लाया जा सके। कमोबेश इन सारे संगठनों की कमान सरकारी अफसरों, इंजीनियर्स, कांट्रैक्टर्स और ट्रांसपोर्टर्स के हाथों में है। राजनीतिक दलों से संबंध रखने वालों को सक्षम में जगह तो दी गई है, लेकिन इनको दूसरी पंक्ति तक ही सीमित रखा गया है। सक्षम में राजपूत समाज, रघुवंशी समाज, दांगी, परमार, सिख, गुर्जर-गुज्जर, जाट, मेवाड़ा, लोधी लोधा, कौरव, मराठा क्षत्रिय समाज सहित करीब 28 जातीय संगठनों ने महासंघ गठन के साथ ही भागीदारी के लिए सहमति दे दी है।
झगडे मिटाकर होंगे एक
एक सोची समझी रणनीति के तहत महासंघ अपने को सामाजिक सुधार कार्यों से जुड़ा हुआ बता रहा है। इसके लिए विधवा विवाह को बढ़वा देने और बाल विवाह के साथ ही मृत्यु भोज रोकने के कार्यक्रम चलाने पर जोर दिया गया है, लेकिन असली मकसद फिर भी सामने आ ही जाता है। महासंघ की सबसे बड़ी कवायद तो यही होगी कि, पंचायत से लेकर विधानसभा और संसद के चुनाव तक जातिगत आधार पर होने वाले झगड़ों को रोकना, जिसका राजनीतिक दल फायदा उठाते हैं। इससे सामाजिक टकराव बढ़ता जा रहा है, जिसको रोकने के लिए एक मंच पर सारे क्षत्रिय आने का दावा करते हैं। हालांकि, परदे के पीछे का सच यही है कि प्रशासनिक और राजनीतिक हिस्सेदारी को लेकर ही सारी लड़ाई का ताना बाना बुना गया है।
कामयाब रहा है प्रयोग
अजगर का परिमार्जित रुप है सक्षम और यह तो सबको पता ही है कि जातीय एकजुटता के सहारे राजनीति का प्रयोग हमेशा ही परिवर्तन लाने में कामयाब रहा है। गौरतलब होगा कि, बोफोर्स कांड के बाद स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इसी रणनीति के तहत चौधरी देवीलाल, मुलायम सिंह यादव, लालूप्रसाद यादव, एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, नीतिश कुमार, मुफ्ती मोहम्मद सईद, प्रफुल्ल कुमार मंहत, मधु दंडवते आदि को एक मंच पर खड़ा कर दिया था। इसके नतीजे में कांग्रेस को केंद्र के साथ ही कई बडेÞ प्रांतों में अपनी सरकार गंवानी पड़ी थी। बाद के दिनों में लालूप्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव ने इसे आगे बढ़ाया और क्षेत्रीय क्षत्रप बने।
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कथन
यह महासंघ मौजूदा वक्त की मांग है। इसके जरिए राजनीतिक और प्रशासनिक हिस्सेदारी के लिए सारे क्षत्रियों को साझा मंच मुहैया हो सकेगा। इसका विस्तार जिला और ब्लॉक स्तर तक किया जाएगा।
-देवेंद्र सिंह भदौरिया, अध्यक्ष
सामाजिक स्वरुप ऐसा हो गया है कि सभी मार्शल कौमों को एक मंच पर आना चाहिए। इससे देश की एकता और मजबूती के साथ ही सामाजिक संतुलन और हिस्सेदारी भी ईमानदारी से तय हो सकेगी।
-हरिशंकर सिंह रघुवंशी, महासचिव
सक्षम बदलेगा सियासी तस्वीर
सितंबर 24, 2012
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