भोपाल
राजधानी में गरीबों के कैरोसिन से टैंपों, लोडिंग ट्रक, मिनी बसें और दूसरे भारी वाहन दौड़ रहे हैं। जिला खाद्य अमले की गाहे-बगाहे मिनी बसों की चेकिंग की रस्मअदायगी के अलावा कभी भी कैरोसिन की कालाबाजारी रोकने के लिए कारगर कार्रवाई नहीं की जाती।कैरोसिन के दुरुपयोग की पुष्टि बीते दिन हुए बस अग्निकांड की जांच में हुई है। जांच में खुलासा हुआ है कि, बस को गरीबों के कैरोसिन से चलाया जा रहा था। गौरतलब होगा कि एक बस एक दिन में सामान्यत: 400 किमी चलती है और एक लीटर में 4 किमी का एवरेज देती है। ऐसे में एक बस में रोजाना 100 लीटर कैरोसिन की खपत होती है। वास्तविकता यही है कि गरीबों के नाम कैरोसिन पर दी जाने वाली सब्सिडी का फायदा मोटर मालिक उठा रहे हैं, जिसमें कैरोसिन हॉकर, एजेंट और उपभोक्ता भंडारों से लेकर खाद्य अमले तक की मिलीभगत होती है। इसीलिए बसों को कैरोसिन से चलते हुए पकड़े जाने के बाद भी कैरोसिन सप्लाई करने वालों को ढूंढ़ने की कोशिश तक नहीं की जाती,
बल्कि यह बहाना बनाया जाता है कि लाइन में गरीब परिवारों के बच्चे लगकर कैरोसिन लेते हैं और बाद में इकट्ठा करके बेच देते हं
दो टंकियों का खेल
बसों में डीजल टैंक को दो हिस्सों में बांट दिया जाता है, जिसके एक हिस्से में डीजल और दूसरे हिस्से में कैरोसिन रहता है। ऐसे में खाद्य अमले की जांच के दौरान सिर्फ डीजल की जांच करके गाड़ी आगे बढ़ा दी जाती है। सूत्रों का कहना है कि, भोपाल की सड़कों पर दौड़ने वाली मिनी बसें, टैंपो, लोडिंग वाहन और डंपर तक गरीबों के कैरोसिन से ही चल रहे हैं। इसके बावजूद जिला खाद्य अमला जांच के नाम पर सिर्फ रस्मअदायगी करता है।
कथनऔचक निरीक्षण के अलावा शिकायत मिलने पर भी बसों और अन्य वाहनों की जांच की जाती है। अगर किसी के पास पुख्ता जानकारी हो तो सूचना मिलने पर तत्काल कार्रवाई की जाती है।
एचएस परमार, जिला आपूर्ति अधिकारी