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यूनिसेट की ‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन रिपोर्ट 2021’ जारी

हम बच्‍चों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध : शमी

भोपाल। हर साल दुनिया में बच्‍चों की स्थिति पर रिपोर्ट प्रस्‍तुत करने वाले वैश्विक संगठन ने अपने इतिहास में पहली बार इस रिपोर्ट में बच्‍चों के मानसिक स्वास्थ्य की पड़ताल की है। विभिन्‍न देशों के साथ मध्‍यप्रदेश में बुधवार को यह रिपोर्ट जारी की गई। रिपोर्ट में इस बात पर फोकस किया गया है कि घर, स्कूल और समाज में ऐसे कौन से जोखिम और सुरक्षात्‍मक कारक हैं जो बच्‍चों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करते हैं। रिपोर्ट जारी करते हुए मध्‍य प्रदेश के स्‍कूल शिक्षा विभाग की प्रमुख सचिव रश्मि अरूण शमी ने कहा कि मध्‍य प्रदेश सरकार बच्‍चों के कल्‍याण के लिए कार्य कर रही है। यूनिसेफ ने एकदम सही समय पर बच्‍चों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य का मुद्दा उठाया है। स्‍कूल शिक्षा विभाग बच्‍चों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार और उनकी समस्‍याओं के निराकरण के लिए प्रतिबद्ध है।

यूनिसेफ द्वारा आयोजित इस ऑन लाइन कार्यक्रम यूनिसेफ मध्‍य प्रदेश की प्रमुख मारर्गेट ग्‍वाडा, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञ फरजाना मुल्‍ला तथा डॉ. हरीश शेट्टी, एमपी चाइल्‍ड राइट आब्‍जर्वेटरी की प्रमुख निर्मला बुच, देवी अहिल्‍या विश्‍व विद्यालय इंदौर के पत्रकारिता विभाग की प्रमुख डॉ. सोनाली नरगुंदे आदि उपस्थित थे।

रिपोर्ट और बच्‍चों के न्‍यूज लेटर ‘मांदल’ को जारी करते हुए प्रमुख सचिव स्‍कूल शिक्षा विभाग रश्मि अरूण शमी ने कहा कि मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य ऐसा महत्‍वपूर्ण मुद्दा है जिसपर बात नहीं की जाती है। बच्‍चों पर तो ध्‍यान ही नहीं दिया जाता है। मान कर चला जाता है कि बच्‍चों को यह व्‍याधि हो ही नहीं सकती है। हमें आए दिन बच्‍चों के आत्‍महत्‍या की खबरें मिल जाती हैं। किसी भी व्‍यक्ति द्वारा जीवन खत्‍म कर देने के निर्णय तक पहुंच जाना एक दिन का कदम नहीं होता है बल्कि यह लंबे समय से चली आ रही समस्‍या का परिणाम होता है। यह बहुत उपयुक्‍त समय है जब यूनिसेफ ने बच्‍चों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर रिपोर्ट प्रस्‍तुत की है। मानसिक समस्‍याएं कोरोना के समय अचानक नहीं उभरी हैं बल्कि ये पहले से कायम थीं जिन पर ध्‍यान नहीं दिया गया। ऑन लाइन शिक्षा के कारण बच्‍चे मोबाइल फोन का उपयोग अधिक कर रहे हैं। इस कारण कई समस्‍याएं खड़ी हो गई हैं। अब इन पर खुल कर बात करना आवश्‍यक हो गया है। मध्‍य प्रदेश में ‘उमंग’ कार्यक्रम के जरिए 9 से 12 तक के बच्‍चों के लिए मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर ध्‍यान दिया गया है। उमंग हेल्‍प लाइन का संचालन भी किया जा रहा है ताकि बच्‍चे अपनी बात कह सकें। यूनिसेफ की यह रिपोर्ट नीति निर्माण में सहायक होगी।

मनोचिकित्‍सक डॉ. हरीश शेट्टी ने कहा कि यह मानसिक आपदा का समय है। कोरोना में सबकुछ किया गया लेकिन किसी राज्‍य में मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं उन्‍नत नहीं हैं। हमने आईआईएम, आईआईटी बनाए हैं मगर हमारे पास साइकोलॉजिस्‍ट नहीं है। हमें मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के विशेषज्ञ नहीं चाहिए। वे तो गंभीर समस्‍याओं के लिए हैं। हमें मानसिक समस्‍याओं की जल्‍दी पहचान कर लेने वाला मैदानी अमला चाहिए। शिक्षकों और माता पिताओं को मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की बुनियादी समझ और समाधान की जानकारी होनी चाहिए। यदि बच्‍चे के बर्ताव में परिवर्तन है तो स्‍कूल के शिक्षक से बात कीजिए। बच्‍चा बात नहीं करता है। बहुत क्रोध करता है। उसकी भूख और नींद में बदलाव आया है। वजन कम हो गया है। डर कर नींद से जाग जाता है। उसे अधिक सपने आते हैं तो वह जरूर किसी मानसिक परेशानी से गुजर रहा है। इस समस्‍या को अनदेखा न कीजिए बल्कि बच्‍चे से बात कीजिए।

मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञ फरजाना मुल्‍ला ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि पढ़े लिखे माता पिता को भी विश्‍वास नहीं होता है कि बच्‍चे भी मानसिक परेशानियों से घिरे हो सकते हैं। उन्‍हें भी डिप्रेशन हो सकता है। बच्‍चों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के मुद्दे पर माता पिता को भी शिक्षित करने की आवश्‍यकता है। यूनिसेफ ने बहुत सही समय पर हमें जागरूक किया है। हमें अभिभावकों के व्‍यवहार को भी बदलना है। बच्‍चों की बात को अनुसनी न करें। कोई भी व्‍यक्ति आत्‍महत्‍या के स्‍तर पर पहुंच जाता है तब हम उन पर ध्‍यान देते हैं। शीघ्र लक्षणों और समस्‍याओं को समझेंगे हम मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सुधार पाएंगे।

एमपी चाइल्‍ड राइट आब्‍जर्वेटरी की प्रमुख निर्मला बुच ने कहा कि इस रिपोर्ट के जरिए यूनिसेफ ने अपनाय यह संकल्‍प दोहराया है कि हम सभी मिल कर घर, परिवार, समाज, स्‍कूल को बच्‍चों के लिए सुरक्षित बनाएंगे। मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर बात करेंगे। शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य से ज्‍यादा अहम् है मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य। इस रिपोर्ट का महत्‍वपूर्ण संदेश है कि चुप नहीं रहना है। धारणाओं को तोड़ना होगा। मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य बीमारी नहीं है। मानसिक स्थिति है। इसे समझना होगा। खूब खुश होने से उदास रहने तक मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की स्थितियां हैं।  मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सुधारना सीखें। बात करें, सुनें यह पहला भाग है। समझें और उस पर काम करें। माता पिता परवरिश के तरीकों में सुधार करें। बच्‍चे चाहते हैं कि वे अपनी बात, अपनी समस्‍याएं हमारे साथ साझा करें। रिपोर्ट ला कर इस संदेश को कार्य के फोकस में ला दिया है।

 

यूनिसेफ मध्‍य प्रदेश की प्रमुख मारर्गेट ग्‍वाडा ने कहा कि कोरोना काल में बच्‍चे मानसिक परेशानियों से घिर गए है। उनका डर, अकेलापन और अवसाद हमारी चिंता का केंद्र है। यह बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए बच्‍चों को प्रोत्‍साहन, उनकी रक्षा और देखभाल के लिए प्रतिबद्धता दोहराने का समय है। उन्‍हें कहा कि इस‍ रिपोर्ट में भारत के 41 प्रतिशत युवाओं ने स्‍वीकार किया है कि वे अपनी बात दूसरों के साथ साझा करना चाहते हैं। हमें इन बच्‍चों की बात सुनना चाहिए।

कार्यक्रम का संयोजन कर रहे यूनिसेफ मध्‍यप्रदेश के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी ने कहा कि कोविड 19 महामारी ने पूरी दुनिया को कई तरह से प्रभावित किया है। इसने बच्चों और युवाओ के स्‍वास्‍थ्‍य व जीवन पर बड़ा असर डाला है। अपने इतिहास में पहली बार, यूनिसेफ की सालाना रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन’ ने बच्‍चों के मानसिक स्वास्थ्य की पड़ताल की है। रिपोर्ट बच्‍चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए केवल स्‍वास्‍थ्‍य ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्रों में तत्काल निवेश की मांग करती है। यह स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा जैसे कि पालन-पोषण और समग्र स्कूली कार्यक्रमों जैसे क्षेत्रों में असरकारी हस्तक्षेप करने पर बल देती है। यह समाज से मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ने और इस समस्‍या को दूर करने, समझ को बढ़ावा देने और बच्चों व युवाओं के अनुभवों को गंभीरता से लेने का आह्वान करती है।

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