बेगमगंज। तबलीगी जमात के साबिक अमीरे जमात (द्वितीय) हाजी अब्दुल हमीद साबिर रह. 28 साल पहले 6 जून 1995 को इस फानी दुनिया को छोड़ कर अपने मालिके हकीकी से जा मिले आज भी उनकी यादें लोगों के जेहन में ताजा हैं। उनके द्वारा समाज सुधार के लिए किए गए कार्य 28 साल बाद भी समाज को मजबूती प्रदान कर रहे हैं।
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| स्वर्गीय हाजी अब्दुल हमीद साबिर रह. |
उक्त उद्गार आपकी यौमे वफात पर वरिष्ठ अधिवक्ता चांद मिया ने व्यक्त करते हुए आप के जरिए शुरू किए गए कार्यों का अनुसरण करने का आह्वान किया।
इसलाहे मिलत कमेटी के संयोजक शब्बीर अहमद ने अपने उद्बोधन में बताया कि इल्म इतना वसी था कि लोग आपको बिना डिग्री का आलिम कहा करते थे लोग आपसे मसाइल पूंछने आते थे, आपको खुदा ने वह शऊर बख्शा था कि अगर तकरीर कर दें तो एक हरारत पैदा हो जाती थी । दुआ मांगने का तरीका खुदा ने ऐसा दिया था कि जब बारगाहे इलाही में हाथ उठाते थे तो आमीन कहने वालों की हिचकियां लग जाती थी । आपको हिन्दी, उर्दू, फारसी में अच्छी महारत हासिल थी। सभी मज़हब के लोग आपका अदब किया करते थे।
इस अवसर पर उपस्थित लोगों द्वारा आपको खिराजे अकीदत पेश की गई और शिद्दत के साथ याद किया गया। राजे अकीदत पेश करने वाले सामाजिक संगठनों में इसलाहे मिल्लत कमेटी, अल खैर ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी, जमीयत उलेमा, मजलिसे शूरा, मंसूरी समाज संगठन, मुस्लिम त्योहार कमेटी, मदरसा मदीनतुल उलूम, मदरसा मिस्बाहुल उलूम, मदरसा जकारिया, सहित अनेकों सामाजिक संगठन शामिल हैं।

