- दस साल से बिना हितग्राही के चल रहा बसति गृह
- बिना काम के वेतन ले रहे अधिकारी
- मंत्री और उनके स्टाफ की मेहरबानी
- महत्वकांक्षी योजनाओं के लिए अमला नहीं
भोपाल
मप्र की सरकार जिस लाडली लक्ष्मी योजना पर अपना सीना फुलाए बैठी है, उसके क्रियान्वयन के लिए महिला एवं बाल विकास के पास अब अमला कम पड़ने लगा है। विभाग ने हाल ही में वित्त विभाग को प्रस्ताव भेजकर लाडली लक्ष्मी के लिए जिलों में अतिरिक्त अमला स्वीकृत करने की अनुमति मांगी है। इस अतिरिक्त अमले के वेतनभत्तों के लिए विभाग के अलग से कोई रकम नहीं है, इसलिए वित्त विभाग के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा। दूसरी तरफ विभाग में पहले स्वीकृत अमले का सही उपयोग नहीं हो रहा है। जबलपुर के महिला बसति गृह में पिछले दसा साल एक भी हितग्राही नहीं आया लेकिन केन्द्र का संचालन जारी है। यहां पदस्थ अधिकारी कर्मचारियों को हटाने में विभाग के अधिकारियों की जरा भी रुचि नहीं है। पूरी सरकार लाडली लक्ष्मी का राग अलाप थ्रही है तो विभागीय की मंत्री रंजना बघेल और कुछ अधिकारी इसकी आड़ में मनमानी कर रहे हैं। मनमानी भी ऐसी जो सरकारी खजाने पर भारी पड़ रही है। अमले की कमी का बहाना बनाकर विभाग में अफसरों को खुलकर उपकृत किया जा रहा है।
बताया जाता है कि कामकाजी महिलाओं को आश्रय देने के लिए जबलपुर जिले में बनाए गए महिला बसति गृह दो फरवरी 1969 से चल रहा है। जबलपुर जैसे महानगर में जहां हजारों कामकााजी महिलाएं कामकाजी हैं और इतनी यहां काम की तलाश में आकर बसती हैं, उस शहर में इस संस्था को एक भी हितग्राही नहीं मिला। इस बसति गृह में दस सालों में एक भी महिला नहीं आई। जबकि इसकी स्थापना इसलिए की गई थी कि कामकाजी महिलाओं को सुरक्षित आवासीय सुविधा उपलब्ध कराई जाए। व्यवसायिक पाठ्यक्रम में अध्ययन करने वाली महिलाओं को भी इस बसति गृह में आश्रय उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। गृह में पिछले दस साल से मायादास गोहिया वरिष्ठ द्वितीय श्रेणी राजपत्रित अधिकारी के रूप में पदस्थ हैं। साथ ही दैनिक वेतन पर एक भृत्य भी काम कर रहा है। संस्था पर प्रतिवर्ष लगभग साढेÞ चार लाख से पांच लाख रूपए खर्च हो रहे हैं। महिला एंव बाल विकास आए दिन रोना रोता है कि योजनाएं बढ़ती जा रही हैं लेकिन अमला नहीं है। विभाग के जबलपुर संयुक्त संचालक समय-समय पर लिख चुके हैं कि दस वर्षों से कोई हितग्राही इस बसति गृह में नहीं है, इसलिए इसे संचालित रखने का औचित्य भी नहीं है, लेकिन विभाग के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। संयुक्त संचालक ने भी निरीक्षण कर अपना प्रतिवेदन भेजकर औपचिारिकता पूरी कर दी। विभाग में किसी अधिकारी को इतना समय नहीं है कि वे जिले में रह रहीं महिलाओं का सर्वे कराकर ये प्रयास करें कि जितनी सीट बसति गृह के लिए स्वीकृत हैं, उतनी महिलाओं को इसमें रहने की जगह उपलब्ध कराएं।
सूत्रों के अनुसार बिना काम के सालाना लाखों रूपए खर्च के चलाए जा रहे इस बसति गृह को केवल एक अधिकारी की खातिर बंद नहीं किया जा रहा। बिना हितगा्रही वाले इस गृह को चलाने के लिए विभाग दस सालों से यहां पदस्थ मायादास गोहिया को बिना काम के वेतन दे रहा है। बताया जाता है कि गोहिया विभागीय मंत्री रंजना बघेल के स्टाफ में पदस्थ एक बहुचर्चित व्यक्ति से सीधे जुड़ीं हैं। इन्हीं की मेहरबानी से केन्द्र भी चल रहा है और वे बिना काम का वेतन भी ले रहीं हैं। यही वजह है कि हाल में विभाग ने परियोजनाओं और कार्यक्रम अधिकारियों के तबादले किए लेकिन इस गृह की तरफ किसी ने आंख उठाकर भी नहीं देखा।
किसान पुत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में सरकारी एजेंसियां भी किसानों को नकली कीटनाशक थमा कर फसलों को चौपट करने में अपना रोल निभा रहीं हैं। अब तक प्रायवेट कीटनाशक विक्रेताओं के हाथों ठगाने वाले किसान अब सरकारी अमले के लालच का शिकार हो रहे हैं। सरकार की नाक के नीचे भोपाल संभाग में सरकारी अनुदान से किसानों को नकली कीटनाशक बांटा जा रहा है। इससे कई किसानों की फसलें खराब होने लगीं हैं।
