दोषी साबित होने के बाद भी अपर संचालक के बजाय सिर्फ कैशियर सस्पेंड
प्रशांत मेहता जांच समिति की रिपोर्ट में दोषी अफसर पर नहीं हो रही कार्रवाई
विधायक दीपक जोशी ने सीबीआई जांच के लिए मुख्यमंत्री को लिखा पत्र
ब्यूरो, भोपाल
अधिकार नहीं होते हुए भी 68 करोड़ रुपए के आहरण के लिए प्रतिहस्ताक्षर करने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के बजाय बीते दो साल से टाल मटोल का दौर जारी है। कार्यालय आयुक्त अनुसूचित जाति विकास में वर्ष 2008-09 से 2009-10 के बीच भ्रष्टाचार, फर्जी आहरण, गबन एवं वित्तीय अनियमितताओं की जांच में पुष्टि होने के बाद भी सिर्फ अदने से कैशियर को सस्पेंड करके कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, लेकिन वास्तविक दोषी प्रथम श्रेणी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल पर घूम रही है।
अधिकार नहीं होते हुए भी 68 करोड़ रुपए के आहरण के लिए प्रतिहस्ताक्षर करने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के बजाय बीते दो साल से टाल मटोल का दौर जारी है। कार्यालय आयुक्त अनुसूचित जाति विकास में वर्ष 2008-09 से 2009-10 के बीच भ्रष्टाचार, फर्जी आहरण, गबन एवं वित्तीय अनियमितताओं की जांच में पुष्टि होने के बाद भी सिर्फ अदने से कैशियर को सस्पेंड करके कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, लेकिन वास्तविक दोषी प्रथम श्रेणी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल पर घूम रही है।
राज्य में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपी अफसरों को किस तरह से बचाया जा रहा है, यह उसकी बानगी है। वर्तमान में अपर संचालक, आदिम जाति क्षेत्रीय विकास योजनाऐं, सतपुड़ा भवन में पदस्थ एसएस भंडारी के खिलाफ विभाग के पास आर्थिक कदाचरण के प्रमाण होने के बाद भी बीते दो साल से कार्रवाई टल रही है। इस बीच भाजपा विधायक दीपक जोशी के विधानसभा तारांकित प्रश्न 4505 दिनांक 29 मार्च 2012 के जवाब में आदिम जाति कल्याण विभाग ने स्वीकार किया कि एसएस भंडारी, अपर संचालक द्वारा अधिकारविहीन होते हुए भी 45 करोड 10 लाख 97 हजार 674 रुपए के देयकों पर प्रतिहस्ताक्षर किये गये। इस पर तत्काल कार्रवाई की घोषणा की गई थी। इसके बाद भी मामले के दब जाने से आहत जोशी ने सीधे मुख्यमंत्री को पत्र लिखते हुए करोड़ों के घोटाले की सीबीआई जांच की मांग की है।
यह था मामला
स्वरोजगार योजना संबंधी 7 करोड़ का आहरण तत्कालीन अपर संचालक एसएस भंडारी ने अपने प्रतिहस्ताक्षर से देयक क्रमांक-350, दिनांक 15 दिसबंर, 2009 वल्लभ भवन कोषालय से आहरण करवाया। गौरतलब होगा कि, राशि के आहरण की अनुमति वित्त विभाग ने 15 दिन बाद 30 दिसबंर, 2009 को दी थी। इस तरह भंडारी ने प्रतिहस्ताक्षर के अधिकार नहीं होते हुए भी राशि का आहरण करवाया। यह सिलसिला जारी रहा और अधिकार न होने के बावजूद अनुसूचित जाति विकास संचालनालय में पदस्थी के दौरान भंडारी ने 7 दर्जन से अधिक देयकों पर प्रतिहस्ताक्षर कर 68 करोड़ से अधिक की राशि वल्लभ भवन कोषालय से आहरित करवाई।
प्रशांत मेहता जांच समिति का खुलासा
वित्तीय अनियमितता की जांच तत्कालीन अपर मुख्य सचिव प्रशांत मेहता की अगुवाई वाली समिति ने की थी। इस समिति में वित्त विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग के सचिव सदस्य थे। जांच के दौरान आयुक्त, अनुसूचित जाति विकास ने पुष्टि की है कि एसएस भंडारी केवल तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के चिकित्सा देयक, यात्रा देयक की स्वीकृति एवं प्रतिहस्ताक्षर, त्यौहार अग्रिम के देयकों पर प्रतिहस्ताक्षर के लिए ही अधिकृत थे।
इस तरह बचते रहे भंडारी
-मेहता कमेटी का जांच प्रतिवेदन सर्वप्रथम डॉ. देवराज बिरदी, तत्कालीन प्रमुख सचिव, आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग (वर्तमान में प्रमुख सचिव, वन विभाग) के समक्ष प्रस्तुत हुआ, किंतु कार्यवाही नहीं हुई।
-विश्वमोहन उपाध्याय, तत्कालीन आयुक्त, अनुसूचित जाति विकास (वर्तमान में आयुक्त, पंचायती राज) के सामने भी फाइल पेश हुई। कार्रवाई का प्रस्ताव शासन को नहीं भेजा गया।
-डॉ एम.मोहन राव, तत्कालीन आयुक्त, अनुसूचित जाति विकास (वर्तमान में प्रमुख सचिव, अनुसूचित जाति कल्याण विभाग) के कार्यकाल में अपर संचालक एसपी तिवारी ने 19अक्टूबर, 2011 के पत्र के जरिए विभागीय प्रमुख सचिव डॉ. बिरदी को अनियमितताओं की जानकारी दी।
इन नियमों का उल्लंघन
-मध्यप्रदेश कोषालय संहिता के सहायक नियम-125, 308, 325, 419, 426।
-वित्तीय शक्ति पुस्तिका-1995 के अध्याय-1 के बिंदु-8 और नियम-22, 25।
आडिट आब्जेक्शन की अनदेखी
कैशियर गोविन्द जेठानी और तत्कालीन आहरण संवितरण अधिकारी सुरेश थापक के साथ एसएस भंडारी की भूमिका पर विभागीय आडिट में कई गंभीर आक्षेप हैं। आयुक्त,कोष एवं लेखा की वित्त विभाग को भेजी गई रिपोर्ट डीटीए/अंकेक्षण/2010/742 दिनांक 7 जुलाई,10 में वित्तीय अनियमितता के गम्भीर आक्षेप हैं।
-शिकायतों के बाद गोविन्द जेठानी, तत्कालीन कैशियर को 13 जनवरी 2010 को कैश शाखा से हटाकर समन्वय शाखा में पदस्थ किये जाने के बाद भी 31 मार्च 2010 तक लेखा-कैश शाखा का कार्य कराया जाता रहा।
-एसएस भंडारी ने दिनांक 24 फरवरी,2010 के जरिए स्वयं की गलती को नजर अंदाज करते हुए सारा दोष कैशियर गोविन्द जेठानी पर मढ़ दिया, जबकि लेखा शाखा के प्रभारी भंडारी ही थे।
कथन
अभी तो मैं आउट आॅफ भोपाल हूं, बुधवार को वापसी के बाद इस मामले को देखेंगे। नियमानुसार जो भी कार्रवाई होनी चाहिए, जरुर होगी।
-शैलेंद्र सिंह, प्रमुख सचिव, आदिम जाति कल्याण
इस मामले की फाइल डायरेक्ट्रेट से पीएस, ट्राइबल को भेजी जा चुकी है।
स्थापना का प्रभार होने से पीएस, ट्राइबल ही कार्रवाई करेंगे।
-एम मोहन राव, प्रमुख सचिव, अनुसूचित जाति विकास
यह था मामला
स्वरोजगार योजना संबंधी 7 करोड़ का आहरण तत्कालीन अपर संचालक एसएस भंडारी ने अपने प्रतिहस्ताक्षर से देयक क्रमांक-350, दिनांक 15 दिसबंर, 2009 वल्लभ भवन कोषालय से आहरण करवाया। गौरतलब होगा कि, राशि के आहरण की अनुमति वित्त विभाग ने 15 दिन बाद 30 दिसबंर, 2009 को दी थी। इस तरह भंडारी ने प्रतिहस्ताक्षर के अधिकार नहीं होते हुए भी राशि का आहरण करवाया। यह सिलसिला जारी रहा और अधिकार न होने के बावजूद अनुसूचित जाति विकास संचालनालय में पदस्थी के दौरान भंडारी ने 7 दर्जन से अधिक देयकों पर प्रतिहस्ताक्षर कर 68 करोड़ से अधिक की राशि वल्लभ भवन कोषालय से आहरित करवाई।
प्रशांत मेहता जांच समिति का खुलासा
वित्तीय अनियमितता की जांच तत्कालीन अपर मुख्य सचिव प्रशांत मेहता की अगुवाई वाली समिति ने की थी। इस समिति में वित्त विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग के सचिव सदस्य थे। जांच के दौरान आयुक्त, अनुसूचित जाति विकास ने पुष्टि की है कि एसएस भंडारी केवल तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के चिकित्सा देयक, यात्रा देयक की स्वीकृति एवं प्रतिहस्ताक्षर, त्यौहार अग्रिम के देयकों पर प्रतिहस्ताक्षर के लिए ही अधिकृत थे।
इस तरह बचते रहे भंडारी
-मेहता कमेटी का जांच प्रतिवेदन सर्वप्रथम डॉ. देवराज बिरदी, तत्कालीन प्रमुख सचिव, आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग (वर्तमान में प्रमुख सचिव, वन विभाग) के समक्ष प्रस्तुत हुआ, किंतु कार्यवाही नहीं हुई।
-विश्वमोहन उपाध्याय, तत्कालीन आयुक्त, अनुसूचित जाति विकास (वर्तमान में आयुक्त, पंचायती राज) के सामने भी फाइल पेश हुई। कार्रवाई का प्रस्ताव शासन को नहीं भेजा गया।
-डॉ एम.मोहन राव, तत्कालीन आयुक्त, अनुसूचित जाति विकास (वर्तमान में प्रमुख सचिव, अनुसूचित जाति कल्याण विभाग) के कार्यकाल में अपर संचालक एसपी तिवारी ने 19अक्टूबर, 2011 के पत्र के जरिए विभागीय प्रमुख सचिव डॉ. बिरदी को अनियमितताओं की जानकारी दी।
इन नियमों का उल्लंघन
-मध्यप्रदेश कोषालय संहिता के सहायक नियम-125, 308, 325, 419, 426।
-वित्तीय शक्ति पुस्तिका-1995 के अध्याय-1 के बिंदु-8 और नियम-22, 25।
आडिट आब्जेक्शन की अनदेखी
कैशियर गोविन्द जेठानी और तत्कालीन आहरण संवितरण अधिकारी सुरेश थापक के साथ एसएस भंडारी की भूमिका पर विभागीय आडिट में कई गंभीर आक्षेप हैं। आयुक्त,कोष एवं लेखा की वित्त विभाग को भेजी गई रिपोर्ट डीटीए/अंकेक्षण/2010/742 दिनांक 7 जुलाई,10 में वित्तीय अनियमितता के गम्भीर आक्षेप हैं।
-शिकायतों के बाद गोविन्द जेठानी, तत्कालीन कैशियर को 13 जनवरी 2010 को कैश शाखा से हटाकर समन्वय शाखा में पदस्थ किये जाने के बाद भी 31 मार्च 2010 तक लेखा-कैश शाखा का कार्य कराया जाता रहा।
-एसएस भंडारी ने दिनांक 24 फरवरी,2010 के जरिए स्वयं की गलती को नजर अंदाज करते हुए सारा दोष कैशियर गोविन्द जेठानी पर मढ़ दिया, जबकि लेखा शाखा के प्रभारी भंडारी ही थे।
कथन
अभी तो मैं आउट आॅफ भोपाल हूं, बुधवार को वापसी के बाद इस मामले को देखेंगे। नियमानुसार जो भी कार्रवाई होनी चाहिए, जरुर होगी।
-शैलेंद्र सिंह, प्रमुख सचिव, आदिम जाति कल्याण
इस मामले की फाइल डायरेक्ट्रेट से पीएस, ट्राइबल को भेजी जा चुकी है।
स्थापना का प्रभार होने से पीएस, ट्राइबल ही कार्रवाई करेंगे।
-एम मोहन राव, प्रमुख सचिव, अनुसूचित जाति विकास