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नरसिंहगढ़ रियासत के पूर्व महाराजा भानुप्रकाश सिंह का लंबी बीमारी के बाद इंदौर में निधन

भोपाल/इंदौर/राजगढ़
  कांग्रेस के पूर्व सांसद और नरसिंहगढ़ रियासत के पूर्व महाराजा भानु प्रकाश सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। उनके निधन पर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शोक जताया है। उन्होंने ट्वीट करते हुए श्रद्धांजलि दी है। वह बीमार थे और इंदौर के अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।  उनका जन्म 1929 को हुआ था और 18 साल की उम्र में वह युवराज घोषित किए गए थे। दिग्विजय सिंह ने ट्वीट करते हुए कहा, महाराजा भानुप्रकाश सिंह जी, नरसिंहगढ़ के महाराजा के दुखद देहांत का समाचार सुनकर बेहद दुख हुआ। वे एक बेहद प्रभावशाली व्यक्ति थे। वे इंदिरा गांधी जी के बेहद निकट थे, यदि प्रिवी पर्स के विषय पर कॉंग्रेस से इस्तीफ़ा नहीं दिया होता तो वे कॉंग्रेस के बहुत ही बड़े नेता होते। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और शोक संतप्त परिवार को इस असहनीय दुख सहने की शक्ति प्रदान करें।

 तीसरी लोकसभा में चुने गए थे सांसद
महाराजा भानुप्रकाश सिंह 1962 में तीसरी लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए थे। उन्होंने रायगढ़ लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए थे। वह केन्द्रीय मंत्री और गोवा के राज्यपाल भी थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रजवाड़ों की प्रिवी पर्स बंद की तो महाराज भानुप्रकाश सिंह नाराज हो गए और उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी।

क्या था प्रिवी पर्स?
आजादी के पहले हिंदुस्तान में लगभग 500 से ऊपर छोटी बड़ी रियासतें थीं। ये सभी संधि द्वारा ब्रिटिश हिंदुस्तान की सरकार के अधीन थीं। इन रियासतों के रक्षा और विदेश मामले ब्रिटिश सरकार देखती थी। इन रियासतों के शासकों को क्षेत्रीय-स्वायत्तता प्राप्त थी। जिसकी जितनी हैसियत, उसको उतना भत्ता ब्रिटिश सरकार देती थी और ये नाममात्र के राजा थे। इनके राज्यों की सत्ता अंग्रेज सरकार के अधीन थी, इनको बस बंधी-बंधाई रकम मिल जाती थी। बाद में इंदिरा गांधी ने इसे बंद कर दिया था। जिसके देश के कई राजाओं ने विरोध किया था। कहा गया था कि जिस देश में इतनी ग़रीबी हो वहां राजाओं को मिलने वाली ये सुविधाएं तर्कसंगत नहीं लगतीं।

शेर चुनाव चिन्ह देख दूसरे राजाओं ने भी अपनाया 
नरसिंहगढ़ के आखिरी महाराजा भानुप्रकाश सिंह ने 1970 में इंदिरा गांधी से विवाद के बाद केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। रजवाड़ा संघ ने उन्हें अपना नेता मानते हुए अध्यक्ष बना दिया। इसके बाद चुनाव में उतरे और गुना-राजगढ़ से जीते। उनका चुनाव चिन्ह शेर था, जिसे कई राजाओं ने अपनाया और जीत हासिल की। 1984 में इसी सीट से चुनाव हार गए। 1991 में उन्हें गोवा का राज्यपाल बनाया गया। जहां पर तत्कालीन मुख्यमंत्री से विवाद के बाद उन्होंने 1994 में राज्यपाल पद से भी इस्तीफा दे दिया था।  

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