बेगमगंज। ज्योतिषाचार्य हरिकेश शास्त्री तिंसुआ वालो ने बताया अगहन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी सोमवार को विवाह पंचमी का पर्व हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन का विशेष महत्व है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस दिन पुरुषोत्तम श्रीराम का विवाह माता सीता से हुआ था इसके साथ ही तुलसी दास जी ने रामचरितमानस ग्रंथ पूरा लिख लिया था। हर साल इस दिन को श्री राम और माता सीता के विवाह पर्व के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन श्री राम-सीता की विशेष पूजा होती है। व्रत रखा जाता है। दिनभर मंदिरों में यज्ञ-अनुष्ठान और भजन-कीर्तन होते हैं। इस पर्व पर रामचरितमानस का पाठ किया जाए तो घर में सुख-शांति आती है जिन लोगों के विवाह में बाधाएं आ रही हो या फिर विलंब हो रहा हो उन्हें विवाह पंचमी के दिन व्रत रखना चाहिए और विधि-विधान के साथ भगवान राम और माता सीता का पूजन करना चाहिए पूजन के दौरान अपने मन में मनोकामना कहनी चाहिए। मान्यता है कि इससे जल्दी शादी होने के योग बनते हैं साथ ही सुयोग्य जीवन साथी की प्राप्ति होती है इसी के साथ प्रभु श्री राम और माता सीता का विवाह संपन्न करवाना चाहिए।
फाइल फोटो श्री राम सीता जी |
विवाह पंचमी का महत्व:- हरिकेश शास्त्री ने बताया पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था। उन्होंने स्वयंवर में आए सभी राजा और राजकुमारों के समक्ष यह शर्त रखी थी कि उन्हें भगवान शिव के पिनाक धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ानी होगी। जो ऐसा करने में सफल होगा उनसे राजा जनक की पुत्री का विवाह संपन्न होगा। जैसे ही स्वयंवर शुरू हुआ, कोई भी राजकुमार या राजा पिनाक धनुष को अपने स्थान से हिला नहीं पाया। फिर गुरु विश्वामित्र के साथ पहुंचे राम और लक्ष्मण से यह धनुष उठाने को कहा गया उन्होंने उस चमत्कारी धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा दी। यह देखकर राजा जनक को बेहद प्रसन्नता हुई और उन्होंने खुशी-खुशी अपनी बेटी का विवाह उनसे कर दिया। तब से इस दिन विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता रहा है। इस दिन सीता-राम के मंदिरों में भव्य आयोजन किए जाते हैं इस दिन सुबह ही जल्दी उठकर स्नान कर लें और उसके बाद माता सीता और राम की तस्वीर को देखकर मन ही मन उनका ध्यान करें लकड़ी की चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध करें और उस पर नया लाल या पीला कपड़ा बिछाएं। चौकी पर राम-सीता की तस्वीर या प्रतिमा रख लें। माता सीता को लाल और श्री राम को पीले कपड़े पहनाएं उसके बाद दीपक जलाएं, फूलमाला पहनाएं। दोनों का तिलक करें। भगवान को भोग और प्रसाद अर्पित करें और फिर आरती करें।