बेगमगंज। बड़े शौक से सुन रहा था ज़माना, तुम ही सो गए दास्तां कहते कहते, हम बात कर रहे है उस अज़ीम शख्सियत की जिन्होंने अपनी हिकमत अमली से शिक्षा के क्षेत्र में वो अलख जगाई की पढ़ाई में काम चोरी करने वाले स्टूडेंट भी उनकी मोहब्बत भरी मार खाकर पड़ने पर मजबूर हो जाते थे। कई राह से भटके हुए स्टूडेंट्स को दोस्ताना अंदाज में समझाने का उनका तरीका निराला था। वह सारे स्टूडेंट्स के तो चहेते थे ही स्टूडेंट्स के परिजन भी उनका सम्मान करते थे। ऐसे हम सबके चहेते शिक्षक अब्दुल जब्बार खान 17 जुलाई 2010 को हम सबको गमजदा छोड़कर मालिके हकीकी से जा मिले। 13 साल का लंबा अरसा गुजर गया लेकिन ऐसा महसूस होता है कि वह कहीं आस-पास ही हैं।
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| फाइल स्वर्गीय मास्टर अब्दुल जब्बार खान |
उक्त बात उन्हें खिराजे अकीदत पेश करते समय रिटायर्ड शिक्षक सलीम खान ने व्यक्त किए।
सफल व्यवसाई रफीक नवाब ने अपने उद्बोधन में कहा कि उनकी नसीहते, उनके मशवरे आज भी कानों में गूंजते रहते हैं । उन्होंने क्षेत्र के सैकड़ों स्टूडेंट्स के दिल में शिक्षा की वो अलख जगाई कि आज भी लोग उन्हें याद करते हैं और करते रहेंगे। उनके छात्र रहे एडवोकेट सुनील शर्मा ने कहा कि स्कूल में उनके पढ़ाने की शैली का अंदाज़ ही अलग था। जो बहुत कम शिक्षकों में देखने को मिलता है। वे मूलतः सागर के निवासी थे शहर के लोगों ने सागर वाले मास्साब भी कहा करते थे लेकिन सागर में उनकी पहचान बेगमगंज वाले मास्साब के नाम से थी।
स्वर्गीय खान के करीबी रहे, पूर्व नपा अध्यक्ष मलखान सिंह जाट, एडवोकेट सईद नादा, व्यवसाई सुनील जैन, नरेंद्र यादव, सीएम साहू, रफीक मंसूरी, राजेश जैन इंदौरी, पार्षद अजय जैन,पार्षद प्रवीण जैन, नासिर नवाब आदि ने भी उनके जीवन के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला, और सभी ने उन्हें शिद्दत से याद करते हुए खिराजे अकीदत पेश की।

