नई दिल्ली। आईआईएम इंदौर का एक नया रूप देखने को मिल रहा है। भगवद्गगीता (Bhagwat Geeta) के माध्यम से मैनेजमेंट के पाठ सीखते छात्र और पुरातन ज्ञान से आज के छात्रों को तैयार करने का गुर सीखते प्रोफेसर। गीता जयंती (Gita Jayanti) के मौके पर आईआईएम इंदौर (Iim Indore) में यह दृश्य दिखा। आईआईएम के निदेशक प्रोफेसर हिमांशु राय (Professor Himanshu Rai) अपने खास अंदाज और नवाचार के लिए जाने जाते हैं। संस्कृत पर उनकी पकड़ और धर्म संस्कृति के माध्यम से छात्रों को मैनेजमेंट पढ़ाने में उनका कोई सानी नहीं है। गीता जयंती के मौके पर भी उनका यही रूप दिखा। उन्होंने छात्रों और गुरुओं के साथ गीता जयंती पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें उन्होंने बताया कि आज के परिदृश्य में किस तरह से गीता के पाठों को आत्मसात किया जा सकता है। उन्होंने विभिन्न् उदाहरणों के माध्यम से बताया कि नौकरी, व्यापार, धर्म, युद्ध और कर्म इन सबका आपस में क्या संबंध है। प्रोफेसर हिमांशु राय के आध्यात्मिक झुकाव से संस्थान में कई नवाचार हुए और उनके नेतृत्व में संस्थान के परिसर में आध्यात्मिक उपवन, जेन उपवन और ध्वनि उपवन: अनुनाद भी निर्मित किया गया। ये गीता पाठ भी आध्यात्मिक उपवन में हुआ था। वहां आईआईएम इंदौर परिवार के सदस्य अक्सर योगा और ध्यान करने आते हैं।
प्रथम अध्याय में धृतराष्ट्र द्वारा पूछा गया प्रश्न हमें खुद से पूछना चाहिए
प्रोफेसर हिमांशु राय ने इस मौके पर कहा कि गीता के प्रथम अध्याय में धृतराष्ट्र ने जो पहला प्रश्न पूछा, हालांकि वह संजय से था, पर कहीं न कहीं वह वास्तव में धृतराष्ट्र ने स्वयं से पूछा था। आवश्यकता है कि हम भी वही प्रश्न स्वयं से पूछें। वह प्रश्न था कि धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे यानी यह जो कुरुक्षेत्र का स्थान है वह धर्म का स्थान है। अर्थात आज यह निर्णय होगा कि धर्म इधर था या धर्म उधर था। यही प्रश्न हमें हर बार खुद से पूछना चाहिए कि जो हम कर रहे हैं प्रतिदिन प्रतिपहर प्रतिक्षण वह धर्म है या धर्म से इतर है। इसीलिए हमें यह भी जानना आवश्यक है कि धर्म है क्या।