मुंबई। विक्की कौशल और शुजित सरकार की 'सरदार उधम' टिपिकल देशभक्ति वाली फिल्मों से जरा आगे है। यह किसी व्यवस्था और हुकूमत के खिलाफ विरोध की असल-व्यापक सोच और शक्ल को पेश करती है। यह फिल्म अंग्रेजी हुकूमत के नरसंहार, क्रूरता और राजनीतिक दमन को बिना अतिरिक्त शोरशराबे और कटघरे में लिए बदले की कहानी बयां करती है। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बैकड्रॉप में यह सरदार उधम सिंह, भगत सिंह आदि की वीरगाथा और विश्वकल्याण के इरादों से बखूबी इंस्पायर करती है।
दरअसल, जलियांवाला बाग नरसंहार के दो प्रमुख दोषी रहें हैं। एक लेफ्टिनेंट गर्वनर जनरल माइकल ओ डायर। उन्होंने बाग में शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दिया था। दूसरे ऑन ग्राउंड वहां सैकड़ों राउंड गोली फायर करवाने वाले जालंधर के ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड डायर। करीब 25 से 30 हजार लोगों पर सैनिकों ने करीब 1650 राउंड गोलियां चलाईं। गोलियां चलाते-चलाते चलाने वाले थक चुके थे और 379 जिंदा लोग लाश बन चुके थे। फिल्म का नायक यानी सरदार उधम कैसे इंडिया से लंदन जाकर माइकल ओ डायर का खात्मा करता है, कहानी उनके इस सफर की है।