पन्ना.
पन्ना जिले में सिलीकोसिस नामक जानलेवा बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों की संख्या बढक़र दोगुनी से अधिक होने की चिन्ताजनक खबर को लोग अभी भूले भी नहीं थे कि पवई विकासखण्ड के ग्राम झांझर में तीन नये पीडि़तों के मिलने से एक बात आईने की तरह साफ हो चुकी है कि सिलीकोसिस नामक बीमारी पन्ना और उसके आस-पास बसे गांवों तक ही सीमित नहीं है. जिले में जहां कहीं भी पत्थर खदानें और क्रेसर संचालित हैं वहां सिलिका डस्ट बेहद खामोशी से इंसानी जिन्दगियों को निगल रही है.
उल्लेखनीय है कि विगत दिनों जिले के पवई विधानसभा क्षोत्रान्तर्गत आने वाली दूरस्थ ग्राम पंचायत झांझर के भ्रमण के दौरान सोशल वॉच ग्रुप के सदस्य उस समय दंग रह गये जब ग्रामीणों की भीड़ के बीच दो अधेड़ उम्र के व्यक्ति खांसते - खखारते, हांफते हुये अपनी बची हुई सांसों की तकलीफ को दूर करने उपचार सहायता के लिये गुहार लगाने पहुंचे. इनमें पर्वत तनय अठइयां आदिवासी की हालत इतनी गम्भीर है कि वह ठीक से कुछ बोल भी नहीं पाता जबकि विशाल सिंह आदिवासी को खांसी कुछ बोलने नहीं देती है. इन दोनों से बातचीत करने पर पता चला कि वे कुछ वर्ष पूर्व तक पत्थर खदानों में काम करके अपने परिवार का जीवन यापन करते थे. खदानों में कड़ी मेहनत करने के दौरान तबियत ऐसी बिगडी की परिवार का पेट पालनें वाले दोनो आदिवासी अब अपने उदर पोषण के लिये परिवार के दूसरे सदस्यों के निर्भर हैं । घुट-घुट कर जी रहे दोनों मजदूरों ने बताया कि होश सम्भालने के बाद से उन्होंने 35 से 40 वर्ष तक पत्थर खदानों में पत्थर तोडऩे का काम किया है. लेकिन पिछले 8 वर्षों से उनकी हालत ऐसी है कि पत्थरों को तोड़ते - तोड़ते दोनों का शरीर टूट चुका है. एक घंटे तक चली बातचीत में विशाल सिंह आदिवासी और पर्वत आदिवासी बमुश्किल 10 से 15 मिनिट ही किसी तरह अपना दुखड़ा बयां कर सके. बाकी समय उनकी बुझती जिन्दगी की दास्तान गांव वालों नें सुनाई. कई वर्षों से इन दोनों का टीबी का इलाज चल रहा है. बताते चलें कि डाट्स पद्धति के आने के बाद से टीबी लाइलाज नहीं रही. पर इन दोनों बदनसीबों को जो बीमारी है वह जरूर लाइलाज है जिसे अब तक डॉक्टर टीबी बता रहे हैं. सोशल वॉच ग्रुप ने गांव में ऐसे अन्य रोगियों की पड़ताल की तो ग्रामीणों ने एक बुद्ध सिंह यादव नाम के एक अन्य बीमार व्यक्ति से मिलवाया. बुद्ध सिंह ने भी ढ़ाई दशक तक पत्थर खदान मजदूर के रूप में काम किया है. वर्तमान में उसका भी टीबी का इलाज चल रहा है. भीषण गरीबी और बीमारी का दंश झेल रहे इन तीनों मरीजों के बीमारी के लक्षण सिलीकोसिस के बताये जा रहे हैं. यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि वन क्षेत्र से सटे पवई विधानसभा क्षेत्र के ग्राम झांझर व आस-पास के ग्रामों में कई दशकों से पत्थर खदानें संचालित हैं. प्रत्येक खदान में औसतन एक सैकड़ा मजदूर काम करते हैं.
आयोग ने सरकार को भेजा नोटिस
पन्ना जिले के सिलीकोसिस पीडि़तों के समग्र पुनर्वास की उम्मीदें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की संवेदनशीलता से जीवित हैं. पन्ना में जब पहली बार पत्थर खदान मजदूर संघ एवं इन्विरॉनिक्स ट्रस्ट द्वारा संयुक्त रूप से पत्थर खदान मजदूरों की जांच कर 39 पीडि़तों को चिन्हित किया था तब राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग नें राज्य सरकार को नोटिस भेजकर पूरे मामले पर विस्तृत रिपोर्ट तलब की थी. सक्षम राजनैतिक नेतृत्व विहीन इस जिले में कुछ दिन पूर्व जब 82 नये सिलीकोसिस पीडि़त व्यक्तियों के चिन्हित होने तथा पूर्व के चिन्हित तीन मजदूरों की मौत होने की खबर आईं तब प्रदेश सरकार और उसके नुमाइन्दों ने इन बदनसीबों की सुध नहीं ली. पर अखबारों में आईं खबरों को संज्ञान लेकर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने मध्यप्रदेश सरकार को पुन: नोटिस भेजकर पन्ना जिले में सिलीकोसिस पीडि़तों के उपचार एवं पुनर्वास हेतु किये गये कार्यों की विस्तृत रिपोर्ट तलब की है. आयोग की इस सक्रियता से जिले में सिलीकोसिस पीडि़तों की चिन्हांकन की कार्यवाही में गति आने की उम्मीद जगी है.
पत्थर खदानों की कोख में पल रहा सिलीकोसिस
अक्टूबर 25, 2012
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