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भारतीय परम्पराओं में विद्यमान है समृद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण : उच्च शिक्षा मंत्री परमार

भोपाल। उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार ने कहा है कि भारतीय समाज में हर विद्या-हर क्षेत्र में विद्यमान ज्ञान और विज्ञान को युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में पुनः शोध एवं अनुसंधान कर, दस्तावेजीकरण करने की आवश्यकता हैं। इसके लिए समाज में विद्यमान अपने पुरातन परंपरागत ज्ञान और विज्ञान के प्रति स्वत्व का भाव जागृत कर, हीन भावना से मुक्त होना होगा। अपने ज्ञान के प्रति विश्वास का भाव जागृत कर, भारतीय दृष्टिकोण के साथ विश्वमंच पर भारतीय ज्ञान को युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में पुनः स्थापित करना होगा। श्री परमार ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने समाज में शोध एवं अनुसंधान के आधार पर, वैज्ञानिक दृष्टिकोण समावेशी परंपराएं स्थापित की थीं। अतीत के विभिन्न कालखंडों में भारतीय समाज की परम्पराओं के प्रति हीन दृष्टि बनाने का कुत्सित प्रयास किया गया।

उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार रविवार को भोपाल में बरकतुल्ला विश्वविद्यालय परिसर स्थित ज्ञान-विज्ञान भवन में, 12वें भोपाल विज्ञान मेला 2025 के अवसर पर आयोजित 'भारत का विज्ञान -भारत के लिए विज्ञान' विषयक "भारतीय ज्ञान परंपरा संगोष्ठी" में सहभागिता कर, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में भारतीय ज्ञान परम्परा समावेशी शिक्षा के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। मंत्री श्री परमार ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने प्रकृति एवं प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों जल, सूर्य एवं वृक्ष आदि के संरक्षण के लिए कृतज्ञता के भाव से श्रद्धा रूप में परम्परा एवं मान्यता स्थापित की थीं। कृतज्ञता, भारत की सभ्यता एवं विरासत है। श्री परमार ने कहा कि भारत की गृहणियों की रसोई में कोई तराजू नहीं होता है, गृहिणियों को भोजन निर्माण के लिए किसी संस्थान में अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं होती है। भारतीय गृहिणियों में रसोई प्रबंधन का उत्कृष्ट कौशल, नैसर्गिक एवं पारम्परिक रूप से विद्यमान है। भारत की रसोई, विश्वमंच पर प्रबंधन का उत्कृष्ट आदर्श एवं श्रेष्ठ उदाहरण है। भारतीय समाज में ऐसे असंख्य संदर्भ, परम्परा के रूप में प्रचलन में हैं। श्री परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने शिक्षा में, भारतीय दर्शन से समृद्ध भारतीय ज्ञान परम्परा के समावेश का महत्वपूर्ण अवसर दिया है। भारतीय ज्ञान परम्परा मात्र पूजा पद्धति एवं ग्रंथों में सीमित नहीं है बल्कि इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समृद्ध समावेश हैं। इसे पुनः शोध एवं अनुसंधान कर दस्तावेज के रूप में समृद्ध करने की आवश्यकता है। इससे भविष्य की पीढ़ी जान सकेगी कि भारत विश्वगुरु की संज्ञा से क्यों सुशोभित था। श्री परमार ने भारतीय पुरातन ज्ञान और विज्ञान से जुड़े प्रासंगिक एवं तथ्य आधारित उदाहरण प्रस्तुत कर, भारतीय ज्ञान परम्परा पर प्रकाश डाला। श्री परमार ने बताया कि इंजीनियरिंग, मेडिकल एवं तकनीकी के क्षेत्र में भी भारत के पास समृद्ध ज्ञान था। उन्होंने बताया कि प्रदेश में, उच्च शिक्षा में प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परम्परा का समावेश किया गया है। विद्यार्थियों को हर विषय के पहले अध्याय में, उससे जुड़ी भारतीय ज्ञान परम्परा पढ़ने को मिलेगी।

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